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________________ १२४ प्रशापना भवोपपातगतिः प्रज्ञता, अथ नो भवोपपातगति प्ररूपयितुं गौतमः पृच्छति-से किं तं नो भवोववायगतो ?' तत्-अथ का सा-कतिविधा, नो भवोपपातगतिः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह'नो भवोवधायगती दुविहा पण्णत्ता' नो भवोपपातगति द्विविधा प्रज्ञप्ता, तत्र नो भवस्तावत् कर्मसम्पासम्पाय नैरयिकत्यादि पर्यायरहितो भवव्यतिरिक्तो व्यपदिश्य। स च पुद्गलः सिद्धो वा भवति तदुभयस्यापि उपयुक्तलक्षण भयातीतत्वात्, तस्मिन् नो भवे उपपात:प्रादुर्भावरूप एव गति गमनमिति नो भवोपपातगति रिति, तदेव विशदयन्नाह-तं जहापोग्गलणोभवोववायगती सिद्ध नो भवोवत्रायगती' तद्यथा-पुद्गल नो भयोपपातगतिः, सिद्ध नो भवोपंपातगतिश्च, तत्र गौतमः पृच्छति-'से. किं तं पोग्गल नो भवोचवायगती ?' तद-अथ का सा-कतिविधा. पुट्ठल नो भवोपपातगतिः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह- पोग्गलणो भवोववायगंती-जं णं परमाणुपोग्गले लोगस्स पुरथिमिल्लाओ चरमंताश्री पञ्चत्धिमिल्लं चरमंतं एगसमएणं गच्छइ' पुद्गल नो भवोपपातगतिस्तावत्-यत् खलु परमाणु पुद्गल, लोकस्य पूर्वस्मात् चरमान्तात् पश्चिम चस्मान्तम् एकस नयेन गच्छति, एवम्-'पञ्चस्थिमिल्लायो वा चरमंताओ पुरथिमिल्लं चरमंतं एगसमएणं गच्छई' पश्चिमाद् वा चरमान्तात् पूर्व चरमान्तम् - गौतमस्वामी-प्रश्न करते हैं-हे भगर्वान् ! नोभवोपपातगति किसे कहते हैं ? . भगवान्-हे गौतम! नोभवोपपातगति दो प्रकार की कही है। कर्म के उदय से होने वाली नारकत्व आदि पर्यायों से रहित, भव से जो भिन्न हो उसे नोभव कहते हैं। पुद्गल और. सिद्ध भव से भिन्न हैं, क्योंकि यही दोनों. कर्मजनित. पर्यायों से रहित हैं । उस नोभव में उपपात रूप गति को नोभवोपपातगति, कहा गया है । इसीका स्पष्टीकरण करते हुए सूत्रकार कहते हैं-नोभवोपपात. गति के दो भेद ये हैं-पुद्गल नोभवोपपातगति और सिद्धनोभवोपपातगति। ... '. 'गौतलस्वामी-हे भगवान् ! पुद्गलनोवोपपातगति किसे कहते हैं ? • भगवान्-हे गौतम ! पुद्गलपरमाणु लोक के पूर्वी चरमान्त अर्थात् छोर (अन्त) से पश्चिमी चरमान्त तक एक समय में चला जाता है, इसी प्रकार पश्चिमी चरमान्त से पूर्वी चरमान्त तक एक ही समय में पहुंच जाता है, दक्षिणी ' श्री गौतमपाभी- मावन् ! ना लवासात न । ( શ્રી ભગવાન–ને ભ પાત ગતિ બે પ્રકારની કહી છે. કર્મના ઉદયથી થનારી નારકવ આદિ પર્યાયેથી રહિત, ભવથી જે 'બિન હોય તેને ને ભવ કહે છે. એ પુદ્ગલ અને સિદ્ધ ભવથી ભિન્ન છે, કેમકે આજ અને કર્મભનિત પર્યાથી રહિત છે. તેને ભવમાં ઉપપાત રૂ૫ ગતિને ને ભોપાત ગતિ કહેલ છે. એનું જ સ્પષ્ટીકરણ કરતાં સવકાર કહે છે . ને ભ૫૫ ત ગતિના બે ભેદ આ છે-પુદ્ગલોભપાત ગતિ અને સિદ્ધભપાતગતિ. ( શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્ ! પુદ્ગલને પાત કેને કહે છે? * શ્રી ભગવાન્ હે ગૌતમ ' પુગલ પરમાણુ લેકના પૂવી ચરમાન્ડ અર્થાત્ અન્તથી -
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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