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________________ प्रशापनास्त्रे ____टोका-अथ सिद्धि क्षेत्रोपपातगति प्रभृति प्ररूपयितुमाह-'से किं तं सिद्धखेत्तोववायगती' तत्-अप का सा-कतिविधा सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'अणेगविहा पण्णत्ता' अनेकविधा-नानानकारिका सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः प्रज्ञप्ता, तत्र सिद्धेः क्षेत्रं सिद्धिक्षेत्र तस्मिन् उपपातः प्रादुर्भावरूपा गतिः सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिरित्यर्थः, 'तं जहा-जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवयवासे स पवसं सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती' तद्यथा-जम्बूद्वीपे द्वीपे भरतैरवतव-भरतवपरवतवयोरुपरि सपक्षम्-समानाः पक्षा:-पूर्व पश्चिमदक्षिणोत्तररूपाः पार्थाः यस्मिन् सिद्धिक्षेत्रोपपातगति भवने तत् सपक्षम् एवं सप्रतिदिक्-सहप्रतिदिशःविदिशः-कोणा ऐशान्यादयो यस्मिन् तत् सप्रतिदिक् 'चं यथास्यात्तथा क्रियाविशेषणमेतत्पदद्वयं बोध्यम्, सिद्धि क्षेत्रोपपातगति भवति, तथा च जम्बूद्वीपे द्वीपे भरतैरवतवर्षयो रुपरि सर्वासु दिक्षु विदिक्षु च सर्वत्र सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिरस्तीति बोध्यम्, एवम् 'जंबुद्दीवे दीवे चुल्ल हिमवंतसिह रिवासहरपव्वय सपक्खं सपंडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती' जम्बूद्वीपे द्वीपे चुल्लहिमवद शिखरि वर्षधरपर्वतस्य सपक्षं-सर्वामु दिक्षु, सप्रतिदिक्-सर्वासु विदिक्षु ____ अव सिद्धक्षेत्रोपपातगति आदि की प्ररूपणा की जाती है-गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-भगवन् ! सिद्ध क्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है। .... . भगवान्-हे गौतम सिद्ध क्षेत्रोपपातगति अनेक प्रकार की कही गई है। सिद्धि का क्षेत्र सिद्धि क्षेत्र कहलाता है, उसमें उपपात रूप गति सिद्धि क्षेत्रो पपातगति कहलाती है। उसके अनेक भेद हैं, यथा-जम्बूद्वीप में भरत और ऐरवत क्षेत्र के ऊपर सपक्ष (पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर रूप पाव जिसमें समान हों) तथा सप्रतिदिक (ईशान आदि विदिशाएं जिसमें समान हों) अर्थात् सभी दिशाओं में और सभी विदिशाओं में सर्वत्र सिद्विक्षेत्रोपपातगति होती यहां 'लमक्ष' और 'सप्रतिदिक्' ये दोनों क्रियाविशेषण समझने चाहिए। इसी प्रकार जम्बूढीप नामक द्वीपमें चुल्लहिलवान और शिखरि नामक वर्षधर पर्वतों के सपक्ष और सप्रतिदिन अर्थात् सभी दिशाओं में और विदिशाओं में सिद्धि ટીકાર્થ–હવે સિદ્ધ ક્ષેત્રપાત ગતિ આદિની પ્રરૂપણ કરાય છે. ' ,' શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે–હે ભગવન્ ! સિદ્ધ ક્ષેત્રે પપાત ગતિ કેટલા પ્રકારની છે ? શ્રી ભગવાન હે ગૌતમ ! સિદ્ધક્ષેત્રો પપાતગતિ અનેક પ્રકારની કહેલી છે. સિદ્ધનું ક્ષેત્ર તે સિદ્ધક્ષેત્ર કહેવાય, તેમા ઉ૫પાત રૂપ ગતિ સિદ્ધિ ક્ષેત્રપાત ગતિ કહેવાય છે, तमना अलेन छ :- .. , ' જબૂઢીપમા ભરત અને એરવત્રિના ઊપર સપક્ષ (પૂર્વ-પશ્ચિમ, ક્ષિણ અને ઉત્તર ! રૂપ પાર્વ, જેમાં સમાન હોય) તથા સપ્રતિદિફ (ઇશાન આદિ વિદિશાએ જેમાં સમાન હોય) અર્થાત બધી દિશાઓમાં અને બધી વિદિશાઓમાં સર્વત્ર સિદ્ધ ક્ષેત્રપાત ગતિ હોય છે સપક્ષ અને “સપ્રતિદિઃ આ બન્ને ક્રિયા વિશેષ સમજવાં એઈએ.
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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