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________________ १९७ 'प्रमेयवोधिनी टीका पद १६ सू० ७ सिद्धक्षेत्रो पातादिनिरूपणम् तत् का सा वन्धनविमोचनगतिः ? बन्धनविमोचनगतिः - यत् खलु आम्राणां वा आम्रातकानां 'वा मातुलुङ्गानां वा, विल्वानां वा कविठानों का पनसान वा दाडिमानां वा पारेवतानां वा अक्षोटानां वा चारगां वा वदराणां वा तिन्दुकानां वा पक्वानां पर्यागतानां वन्धनाद् विप्रमुक्तानां निर्व्याघातेन अधो विश्रसया गतिः प्रवर्तते सा एपा वन्यनविमोचनगतिः, सा एषा विहायोगतिः, प्रज्ञापनायां भगवत्या प्रयोगपदं सम तम् ॥ १६ ॥ सू० ७ ॥ " अथवा जल में (कार्य) शरीर को (उव्विहिया) दूसरे के साथ जोडकर (गच्छति ) गमन करता है ( से तं पंकगती) वह पंकगति है । (से किं तं बंधणविमोयणगती २) बंधनविमोचनगति क्या है ? (जं गं अंबा वा) जो कि आमों का ( अंबाडगाण वा) अथवा अम्लाटकों का ( माउलुंगाण बा) अथवा विजौरों का (बिल्लाण वा) अथवा विल्वों का (कविद्वायाण ) या कवीठों का ( भट्टा वा ) या भद्रनामकफलका (फणसाण वा ) या पनसों कटहल का (दालिमाण वा ) या दाडिमों का ( पारेवताणं वा ) अथवा पारावतों का '(अक्खोलाण वा) या अखरोहों का (चाराण वा) या चारों का ( वोराण वा) या बोरों का ( तिंदुयाण वा) या तेदुओं का (पक्काणं) पकों का ( परियागयाणं) तैयार हुओं का ( बंधणाओ विष्पमुक्काणं) बन्धन से छूटे हुओं का (निव्वाघाते i) रुकावट न होने से (अधे वीससाए गती पवत्तइ) नीचे स्वभाव से ही गति होती है (सेतं धविमोयणगती) वह बन्धन विमोचनगति है (से तं विह योगति वह विहायोगति है । प्रयोगपद समाप्त (कार्य) शरोरने (उव्चिहिया) मीलती साथै लेडीने (गच्छति ) गभन ४रे छे (सेत पंक गती) ते गति छे. (से किं तं बंधणविमोयणगती २) मन्धन विभोयन गति शु छे ? (जं णं अंबाण वा) ले हे हेरीयाना (अंबाडगाण वा ) अथवा अभ्सारमेना ( माउलुंगण वा) अथवा गोनेशना (बिल्लाण' वा) अथवा मित्रांना (कविट्ठाण वा ) अगर विठोना (भट्टाण वा ) गागर 'लई नाभ४ ३ १ (फणसाण वा ) अगर सोना (ढ लिमाणवा) अथवा हाइभोना ' (पारेवताणं वा ) अथवा पारावरताना (अक्खोलाण वा ) अथवा अणरेटिना (चाराण वा ) अथवा यारोंना (वोराण वा ) अगर जोशना (ति दुयाण वा) अगर तें हुयोना ( पक्काणं) पासना (परियागया णं) तैयार थयेसाना ( बंधणाओ विपमुक्काणं) अन्धयी छूटेसामाना (निव्त्राघातेणं) ३ाटन व श्री (अत्रे वीनसाए गती पवत्तइ) नौये स्वभावथी न गति (थाय छे (सेतं बंघन विमोयणगती) ते जन्धन विभोयन गति छे (सेत विहायोगती) भा વિદ્યાયે ગતિ છે. પ્રત્યેગ પદ સમાસ
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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