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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १६ सू० ७ सिद्धक्षेत्रोपपातादिनिरूपणम् ९१३ मण्डूकगति र्यत् खलु मण्डूकः उत्प्लुत्य गच्छति सा एषा मण्डूकगति: ६, तत्का सा नावा त ? नावगति न खलु नावा पूर्ववैतालाद् दक्षिणवैतालं जलपथेन गच्छति, दक्षिणवतालावा अपरवैतालं जलपथेन गच्छति सा एपा नावागतिः ७, तत् का सा नयगतिः - ? नय गति यत् खलु नैगम संग्रहव्यवहार ऋजुस त्रशब्द समभिरूढैवं भूतानां नयानां या गतिः, अथवा सर्वनया अपि यम् इच्छन्ति, तत् सा नयगतिः ८, तत् का सा छाया गति: ? छायागति यत् खलु इयच्छायां वा गच्छावा नरच्छायां वा, किन्नरच्छायां वा, महोरगच्छायां वा गन्धर्वच्छायां गच्छति से तं मंडूगगनी) मेढक जो उछलकर चलता है, वह मंडूकगति है । (से किं तं णावागति ? २) नौकागति क्या है ? (जं णं णावा पुव्ववेतालीओ दाहिणवेयानि जलपणं गच्छति) जो कि नौका पूर्व बैतालीतट से दक्षिणवैनाली को जलमार्ग से जाती है (दाहिणवेतालीओ वा अवरवेतालिं जलपहेणं गच्छति) अथवा दक्षिणचैतालीतर से पश्चिमवैताली को जलमार्ग से जाती है (से तं णावागती) यह नौकागति हुई (से किं तं णयगती १२) नयगति किसे कहते हैं (जं णं णेगमसंगहववहारउज्जसुयसद्दसमभिरूढएवंभूयाणं नयाणं) जो कि नेगम, संग्रह, व्यवहार, ऋतुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवंभूत नयाँ की (जा) जो (गनी) गति (अहवा) अथवा (सव्वयणा वि) सभी नय (जं इच्छंति) जो मानते हैं (से तं जयगती) वह तयगति है । r (से किं तं छायागती ? २) छायागति क्या है ? (जं णं हृछायं वा ) अश्व की छाया को (गयछायं वा ) या हाथी की छाया को (नरछायं वा ) या मनुष्य की छाया को (किन्नर छायं वा ) या किन्नर की छाया का ( महोरगछायं वा ) अथवा महोरग की छाया को (गंधव्त्रछायं वा ) गंधर्व की छाया को (उसहछायं वा ) या (से किं तं मंख्यगती) भंडू गति ने उड़े छे ? (जं णं मंडओ किडित्ता गच्छति से तं मंढयगती) हेड ने उछजीने यासे हे, ते भडू जति छे (से कि तं णावागती) नौभगति शु छे ? (जं णं णावा पुत्र वेतालीओ दाहिणवेयालि जलपण गच्छति ) ने नौ पूर्व वैतादीतरथी दक्षिण वैनासी तरई स भार्गे लय छे (दाहिण वेतालीओ वा अवरवेतालि जलपहेण गच्छति ) अथवा दृक्षिणु वैतासी तटथी पश्चिम वेताली तर सभागथी लय हे (सेत्तं णावागती) ते नौम गति थ 請 (से किं तं णयगती १) नयगति अने हे छे ? ( जं णं णेगमसंगहववहार उज्जुसुय सहसमभिरूढएवंभूयाणं नयाणं) प्रेम ! नैगम, स श्रड, व्यव्हार, भन्नु सूत्र शष्ट, समलि३ढ भने सेवा लतना नयोनी (जा) ? (गती) गति (हवा) गावां (सन्व णया वि) धा न1 (जं इच्छंति) ने माने छे (सेत्तं णयगती) ते नयगति छे (से किं तं छायागती १ २) छायागति शुं छे ? (जं णं हयछायं वा ) घे'ड'नी छायाने गयछायं वा ) हाथीनी छायाने (नरछायं वा ) 'थवा मनुष्यनी छायाने (किण्णरछायं वा ) अथवा निरनी छायाने ( महोरगछायं वा ) अथवा महोरगनी छायाने (गंधव्वच्छायं वा) प्र० ११५
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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