SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 852
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९१२ प्रज्ञापनास युवराजं वा ईश्वरं वा तलवरं वा माडम्बिकं वा कौटुम्बिकं वा इन्यं वा, श्रेष्ठिनं वा सेनापति वा, सार्यवाहं चा, उपसम्पद्य गच्छति सा एपा उपसंपद्यमानगतिः ३, तत् का सा अनुसंपद्यमानगतिः ? अनुपसंपद्यमानगति तु खलु एतेपाञ्चैव अन्योन्यम् अनुपसंपद्य गच्छति सा पपा अनुपमम्पद्यमानगतिः ४, तत् का सा लगत: ? पुद्गलगति यत् खलु परमाणुपुद्गलानां यावद अनन्तप्रदेशिकानां स्कन्धानां गतिः प्रवर्तते सा एषा पुगलगतिः ५, तत् का सा मण्डुकगतिः ? हुए इन्हीं परमाणु आदि की गति होती है, वह अस्पृशद्गनि है । (से किं तं उवसंपजमाणगती ?) उपसंपद्यमानगति किसे कहते हैं ? (जं णं रायं वा ) राजा को (जुवरायं वा ) युवराज को (ईसरं वा ) ऐश्वर्यशाली को (तलवरं वा) तलवर - जिसे राजा की ओर से पट्टामिला हो उसको (माडंवियं) मंडल के अधिपनि को (कोडुंबियं) कौटुम्बिक को (इभं चा) सेठ को (सेणावतिं वा) सेनापति को (सत्वाहं वा ) अथवा सार्थवाह को (उपसंपज्जित्ताणं) आश्रय करके ( गच्छति) गमन करता है (से तं उवसंपजमाणगनी) वह उपसंपद्यमानगति है ! (से किं तं अणुवसंपजमाणगती १२) अनुपसम्पद्यमानगति किसे कहते हैं ? (जं णं एतेसिं चेव) जो इन्ही पूर्वोक्त को (अष्णमवणं) आपस में (अणुवसंपजित्ताणं) आश्रय न करके (गच्छइ) गमन करता है ( से तं अणुवसंपज्जमाणगती) वह अनुपसंपद्यमान गति है। ( सं किं तं पोग्गलगती २) पुद्गलगति किसे कहते हैं ? (जं णं परमाणुपोग्गलाण ) जो परमाणुपुलों की (जाव अनंतपऐसियाणं खंधाणं) यावत् अनन्तप्रदेशी स्कंधों की (गती पचत्तती) गति होती है (से तं पोग्गलगतो) वह पुद्गलगति कहलाती है । (से किं तं मंडूयगती ? २) मंडूकगति किसे कहते हैं ? (जं णं मंडूओ फिडित्ता ગતિ હાય છે. તે અસ્પૃશક્રૂ ગતિ છે (से किं तं वसंपज्ज माणगती १) उपस' पद्यभानगति अने ४ छे ? (जेणं रायं वा ) शब्लने (जुवरायं वा ) युवराजने (ईसरं वा ) मैश्वर्यशासीने (तलवरं वा) तसवर-मेंने शन्ननी तरइथी चट्टो भयो होय तेने (मांडवियं) भडपना अधिपतिने (कोदु वियं) होटुम्भिने ( इमं वा ) शेने (सेणावति वा) सेनापतिने (सत्थवाद वा ) अथवा सार्थवाहने (उपसंपज्जित्ताणं) माश्रय उरीने (गच्छति ) गभन ४रे छे (से तं उपज्जमाणगती) ते पस द्यमानगति छे (से किं तं अणुत्र संपज्ञमाणगती) अनुपसं युधमान गति होते ! छे ? ( ज णं एए सि चेत्र) ते पूर्वोस्तने (अण्ण मण्णं) । ४२ ( अणुवसंपज्जित्ताणं) माश्रय न पुरीने (गच्छइ) गमन ४रे हे (से तं अणुवसंपज्ज माणगती) ते अनुपसंपद्यमान गति छे (से किं तं पाग्गलगती ?) युगस गति ने उसे छे १ (जं णं परमाणु रोग्गलाणं) ने परमाणु युगसोनी (जाव अनंतपरसियाणं खचाणं) यावत् अनन्त प्रदेशी २४ धोनी (गती पवत्तती) गति होय छे (से तं. पोग्गलगती) ते युगस गति धडेवाय छे
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy