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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १६ सू० ३ जीवप्रयोग निरूपणम् ८३१ ntsपि, अथवा एकच कार्मणशरीरकायप्रयोगीच, अथवा एके च कार्मणशरीरकार प्रयोगण | मनुष्याः खलु भदन्त ! किं सत्यमनः प्रयोगिनो यावत् किं कार्मणशरीर कायप्रयोगिणः ! गौतम | मनुष्याः सर्वेऽपि तावद् भवेयुः सत्यमनःप्रयोगिणोऽपि यावद् औदारिकशरीरकायप्रयोगिणोऽपि वैक्रियशरीरकाय प्रयोगिणोऽपि वैक्रियमिश्रशरीरकाय प्रयोगिणच, अथवा एकaौदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी च, अथवा एके चौदारिकंमिश्रशरीर का प्रयोगणव २, अथवा एकश्चाहार कशरीरकायप्रयोगी च, अथवा एके चाहारकशरीरकांयप्रयोगि fe - २, अथवा एकश्राहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगीच, अथवा एकेचाहारक मिश्रशरीरकायप्रयोगो भी (ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी वि) औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी ( अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगी घ) अथवा कोई एक कार्मणशरीर काय प्रयोगी ( अहवेगे य कम्मासरीरकायप्प भोगिणो च) अथवा 'कोई अनेक कार्मणशरीरकायप्रयोगी ( मसाणं भंते! किं सच्चमणप्पओगी जाच किं कम्मा सरीरकायप्पओगी ?) हे भगवन् ! मनुष्य क्या सत्यमनप्रयोगी हैं ? यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगी हैं ? ( गोयमा ! मणूसा सन्वे वि ताव) हे गौतम! मनुष्य सभी (होज्जा) होते हैं (सच्चमणप्पओगी वि) सत्यमनप्रयोगी भो (जाव ओरालियकायपओगी वि) यावत् औदारिककायप्रयोगी भी ( वेउच्चियसरीर कायष्पओनी घि) वैक्रिय शरीर कायप्रयोगी भी ( वेउव्वियमीससरीर कायप्पओगी य) वैकियमिश्रशरीरका प्रयोगी ( अहवेगे य ओरालियमिसासरीरकायप्पओगी य) अथवा कोइ एक औदारिकमिश्रशरीर कायप्रयोगी ( अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायपओगिणो य) अथवा कोई अनेक औदारिकमिश्रशरीरका प्रयोगी ( अहवेगे ये सरीरकायप्पओगी बि) श्रोहारि४ मिश्रशरीरायप्रयेोगी पशु (अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगी य) अथवा हैं।६ ४ ४र्भधु शरीराय प्रयोगी ( अहवेगे य कम्मासरीरपओगिणो य) अथवा કાંઇ અનેક ઠામણુ શરીરકાય પ્રયાગી (मणूसाणं भंते ! कि सच्च मणप्पओगी जाव किं कम्मासरीर का यप्पओगी) है लगवन ! भनुष्य शुद्ध सत्य भनःप्रयेगी ? यावत अमषु शरीरय प्रये.जी छे ? (गोयमा ! मणूसा सव्वे वि ताव) हे गौतम ! मधा मनुष्या (होज्जा) हाय छे (संकमण ओगी वि) सत्यभन अये.जी. ५५ (जाव ओरालियकायप्पओगी वि) यावत् भहारि भयप्रयेोगी पशु (वेडव्विय सरीरकायप्पओगी वि) वैयि शरीराय प्रयोगी पशु (वेडव्विय मीससरीरका यापओगी य) वैयि मिश्र शरीराय प्रयोगी ( अहवेगे य ओर लियमी सासरीरकायप्पओगी य) अथवा अर्ध सोहा रि मिश्र शरीराय प्रयोगी ( अहवेगे च ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य) अथवा मन मोहारि मिश्र शरीराय प्रयोगी ( अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य) अथवा आहार श२२ अयप्रयोगी ( अहवेगे य आहारगसरीरकायप्प ओगिणो य) अथवा
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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