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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद १६ ८० ३ जीवप्रयोगनिरूपणम् अथवा एकश्च कार्मणशरीरकायप्रयोगी च १, अथवा एके च कार्मणशरीरकायप्रयोगिणश्च २, एवम् असुरकुमरा अपि, यावत् स्तनितकुमाराः, पृथिवीकायिकाः खलु भदन्त ! किम् औदारिकशरीरकायप्रयोगिणः, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणः, कार्मणशरीरकायप्रयोगिणः ? गौतम! पृथिवीकायिकाः औदारिकशरीरकायप्रयोगिणोऽपि, श्रौदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणोऽपि, कार्मणशरीरकायप्रयोगिणोऽपि, एवं यावद् वनस्पतिकायिकाः, नवरं वायुकायिकाः सत्यमनप्रयोगी भी (जाव वेउब्वियमीसासरीरकायप्पभोगी वि) यावत् वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी (अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगी य) अथवा कोई एक कार्मणशरीरकायप्रयोगी (अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य) अथवा कोई अनेक कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी। ___ (एवं असुरकुमारा वि जाव धणियकुमारा ) इसी प्रकार असुरकुमार भी यावत् स्तनितकुमार . (पुढविकाइया णं भंते ! किं ओरालियसरीरकायप्पओगी ओरालियमोसासरीरकायप्पओगी, कम्मासरीरकायप्पओगी ?) हे भगवन् । पृथ्वीकायिक क्या औदारिकशरीरकायप्रयोगी हैं, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी हैं, कार्मणशरीरकायप्रयोगी हैं ? (गोयमा!) हे गौतम ! (पुनविकाझ्या) पृथ्वीकायिक (ओरालियसरीरकायप्पओगी वि, ओरालियमीससरीरकायप्पओगी रि, कम्मासरीरकाय प्पओगी वि) औदारिकशरीरकायप्रयोगी भी, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी, कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी (एवं जाव वणप्फइकाइयाणं) इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक भी (णवरं) विशेष (वाउकइया वेउब्धियसरीरकायप्र. ताव) ना२४ मा (होज्जा) उय छ (सच्चमणप्पओगी वि) सत्य मन प्रयोग ५ (जाव वेउब्वियमीसासरीरकायप्पओगी वि) यावत् वैठियम शरी२४य प्रयोगी पाणु (अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पआगी य) Aथा । मे४ मश१२४३५ प्रयोगी पशु (अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पभोगिगोय) मया । भने म शरी२४१य प्रयी ५ सय छे. (एवं असुरकुमारा बि जाव थणियकुमाराणं) ४ ४ारे असु२३मार पशु यावत् स्तान. તકુમાર પર્યન્ત જાણવું. . (पुढविकाइयाणं भंते i tक ओरालियसरीरकायप्प ओगी ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी 'कम्मासरीरकायप्पओगी ?) 3 साप! पृथ्वीय शु मो२ि६ शरी२४।यप्रयोगा छ १ मौ४ि भिशी२४१यप्रयोगी छ, , मशीय प्रयोगी छ ? (गोयमा) 3 गौतम ! (पुट विकाइया) वीयि४ (ओरालियसरीरकायप्पओगी वि, ओर लियमीससरीरकायप्पओगी वि, कम्मासरीरकायप्पओगी वि) मोहरि४ शरी२४य प्रयोगी पर छे मोहाशि भि शरी२४.५ प्रयोगी, अभए शरी२४१य प्रयोजना छे. (एवं जाव वणप्फइकाईयाणं) मे प्रहारे यावत् वनस्पतियि४ ५g (णवरं) विशेष (वाउकाईया वेउब्बियसरीरकायप्पओगी
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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