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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १६ सू० २ जीवप्रयोगनिरूपणम् शरीरकायप्रयोगः एवम् अघुरकुमाराणामपि यावत् स्तनितकुमाराणामपि पृथिवीकायिकांना पृच्छा, गौतम ! त्रिविधः प्रयोगः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- औदारिकशरीर कायप्रयोगः, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगः कार्मणशरीरकाय प्रयगच, एवं यावद् वनस्पतिकायिकानाम्, नवरं वायुकायिकानां पञ्चविधः प्रयोगः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - औदारिकशरीरकायप्रयोगः, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगथ, वैक्रियो द्विविधः कार्मणशरीरकायप्रयोगथ, द्वीन्द्रियाणां पृच्ण, गौतम ! चतुर्विधः प्रयोगः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-असत्यामृपावचः प्रयोगः, औदारिकशरीरकायप्रयोगः, औदारिक मिश्रशरीरकायप्रयोगः, कार्मणशरीर कायप्रयोगः एवं यावत् चतुरिन्द्रियाणां, -८१० ( एवं असुरकुमाराण वि जाव धणियकुमाराणं) इसी प्रकार असुरकुमारों के भी यावत् स्तनितकुमारों के भी (पुढविकाइयाणं पुच्छा ?) पृथ्वीकायिकों के विषय में पृच्छा ? (गोयमा ! तिविहे पओगे पण्णत्ते) हे गौतम । तीन प्रकार के प्रयोग कहे हैं (तं जहा वह इस प्रकार (ओरालियसरीरकायप्पओगे, ओरालियमीससरीरकापओगे, कम्मासरीरकायप्पओगे य) औदारिकशरीरकायप्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरका यप्रयोग, कार्मणशरीरकायप्रयोग (एवं जाव वणस्सर काइयाणं) इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों का (णवरं वाउकाइयाणं पंचविहे ओगे पण्णत्ते) विशेष - वायुकायिकों का प्रयोग पचि प्रकार का कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (ओरालियकायपओगे, ओरालियमीससरीरकायप्पओगे , dear gas, कम्मासरीरकायप्पओगे य) औदारिकशरीरकायप्रयोग, औदारिकमिश्र शरीर कायप्रयोग, दो प्रकार का वैक्रियक और कार्मणशरीर कायप्रयोग (वेदियाणं पुच्छा ?) द्वीन्द्रियों के विषय में पृच्छा ? (गोयमा ! चउबिहे ओगे पण्णत्ते) हे गौतम ! चार प्रकार का प्रयोग कहा है (तं जहा ) चह इस अभय शरीर अय प्रयोग ( एवं असुरकुमाराणं वि जाव थणियकुमाराणं ) मेन अक्षरे અસુરકુમારે ના પણ ચાવત્ સ્તનિતકુમારેાના પશુ ( पुढविकाइयाणं पुच्छा ? ) पृथ्वी अयिना विषयभां ५२: १ ( गोयमा ! तिवि -पओगे पण्णत्ते ) हे गौतम । त्रयु अारना प्रयोग ह्या छे ( तं जहा ) ते या रीते (ओरालियस रीरकायप्पओगे, ओरालियमीससरीरकायप्पओगे, कम्मासरीरकायप्पओगे) भोि શરીર કાચ પ્રયોગ, ઔદારિકમિશ્રશરીર કાય પ્રયોગ, કાણુ શરીર કાયપ્રયોk (વ जाव वणस्सइकाइयाणं ) प्रहारे यावत् वनस्पति अविना ( णवरं घासकाइयो पंचविहे पओगे पण्णत्ते ) विशेष - वायुप्रथिना प्रयोग यांथ प्रारना उछे र जहाँ ) ते आहे (ओरालियकायपओगे, ओरालियमीससरीरकायप्पओगे यॅ) शिर हाय प्रयोग, औद्वारि४ मिश्र शरीर प्रयोग (उत्रिए दुबे के मसरी एक योग्य) બે પ્રકારના વૈક્રિયક અને કામ`ણુ શરીર કાય પ્રયોગ (fflep (बेइंदियाणं पुच्छा) द्वीन्द्रियोना विषयभां शृ२छ ?' ('गोयमी चव्विंहे प्रभोगे पण्णत्ते) प्र० ६०३
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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