SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 705
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेवबोधिनी टीका पद १५ सू० ८ इन्द्रियोपचयनिरूपणम् ६९३ : उपयोगाभा विशेषाधिका, योनेन्द्रियस्य उत्कृष्टा उपयोगाद्धा विशेषाधिका, प्राणेन्द्रियस्य उत्कृष्टा उपयोगाद्वा विशेषाधिका, जिल्वेन्द्रियस्य उन्कृष्टा उपयोगाला विशेषाधिका, स्पर्शनेन्द्रियस्य उस्कृष्टा उपयोगाद्वा विशेपाधिका ५, कतिविधा खलु भदन्त ! इन्द्रियावग्रहणा माझा ? - गौतम ! पञ्चविधा इन्द्रियावग्रहणा प्रज्ञला, तद्यथा-श्रोत्रेन्द्रियाग्रहणा यावत् स्पर्शनेन्द्रियावग्रहणा, एवं नैरपिकाणां यावद् वैमानिकानाम्, नवरं यस्य यावन्ति इन्द्रियाणि सन्ति ६५० ८॥ . हितो उवभोगवाहितो) शेनेन्द्रिय के जघन्य उपयोगद्धा से (चखिदियल्स उकोलिया उबोगद्धा विलसाहिया) चक्षुइन्द्रिय के उत्कृष्ट उपयोगद्धा विशेषाधिक हैं (सोइंदियरस उक्कोलिया उवओगद्धा विलसाहिया) श्रोत्रेन्द्रिय के उत्कृष्ट उपयोगद्धा विशेषाधिक हैं (घाणिदिवस उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया) घ्राणेन्द्रिय के उत्कृष्ट उपयोगद्वा विशेषाधिक हैं (जिभिदियस्स उक्कोसिया उपओगट्ठा विलेसाहिया) जिहवेन्द्रियस्स का उत्कृष्ट उपयोगरा . विशेषाधिक है (फासिदिवस उक्कोलिया उबओगद्धा विसे साहिया) स्पर्शने. न्द्रिय के उत्कृष्ट उपयोगद्वा विशेषाधिक हैं। . (कविहा णं संते ! इंदियओगाहणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! इन्द्रिय-अवनहण कितने प्रकार का है ? (गोयया! पंचविहा इंदियओगाहणा पण्णता?) है। गौतम ! पांच प्रकार का इन्द्रिय अवग्रहण कहा है (तं जहा-सोहंदिय ओगाहणा जाव फालिदिय ओगाहणा) वह इस प्रकार श्रोत्रेन्द्रिय अवग्रहण यावत् स्पर्शने-. न्द्रिय-अश्ग्रहण (एवं नेरइयाणं जाव लाणियागं) इसी प्रकार नारको यावत वैमानिकों की (नवरं जस्स जइ इंदिया अत्थि) विशेष यह कि जिलले जितनी इन्द्रियां हैं। (फासि दिवस जहण्णियाहि तो उवओगद्धाहित) २५शन्द्रियना धन्य उपयोगाद्धाधी (चक्विंदिचस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया) यक्षुरिन्द्रियन जल्ट उपयोगाला विशघिर छे. (सोइंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया) "श्रोन्द्रियन ट रुपये हा विशेषाधि: (घाणि दियास उक्कोसिवा उपओंगद्वा विसेसाहिया) नाणेन्द्रियना Brave योगाचा विशेषाधि छ (जिभिदियस्स उनकोसिया उत्रओगद्धा) Craन्द्रियन ट रुपये विशेषाधिः छ (फासि दियस्स उक्कोसिया बोगद्धा विसेसाहिया) २५ન્દ્રિયના ઉત્કૃષ્ટ ઉપગાદ્ધ વિશેષાધિક છે " (कइविहाणं भंते । इदिय ओगाहणा पण्णत्ता ?) गर !न्द्रिय सपाटमा प्रारना छ १ (गोयमा | पंचविहा इदियोगाहणा पण्णत्ता) 3 गौतम । पाय हारना छन्द्रिय स य ४i छे (तं जहा-सोइंदिओगाहणा जाव फासि दिय ओगाहणा) ते यो मारे श्रीन्द्रिय अवयर यावत् २५शनेन्द्रिय अपयह (एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाण) ४२ ना२४। यावत् वैमानिकानी (नवरं जस्स जइ इंदिया अत्यि) विशेष छ। કે જેમને જેટલી ઈન્દ્રિયે છે
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy