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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद १५ २० ८ इन्द्रियोपचयनिरूपणम् .. . ६१ याणां जघन्धिकायाम् उपयोगाद्धायाम् उत्कृष्टायाम् उपयोगाद्धायाम्, जघन्योत्कृष्टायामुपः योगाद्धायां कतराः कतराभ्योऽल्पा वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेपाधिका वा ? गौतम.. सर्वस्वोका चक्षुरिन्द्रियस्य जघन्यिका उपयोगाद्धा, श्रोत्रेन्द्रियस्य जघन्यिका उपयोगाद्धाविशेषाधिका, घ्राणेन्द्रियस्य जघन्यिका उपयोगाद्धा विशेषाधिका, जिस्वेन्द्रियस्य जयन्यिकाउपयोगाद्धा विशेषाधिका, स्पर्शनेन्द्रियस्य जपन्यिका उपयोगाद्धा विशेषाधिका, उत्कृष्टायामुपयोगादायां सस्तोका चक्षुरिन्द्रयस्य उत्कृष्टा उपयोगाद्धा, श्रोत्रेन्द्रियस्य- उत्कृष्टा-उपयोयाण) हे भगवन् ! इन श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, नाणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के (जहण्णयाए उवओगद्धाए, उक्कोसियाए उवओगद्धाए) जघन्य उपयोगाद्धा और उत्कृष्ट उपयोगद्धा में (जहन्नुकोसियाए उवओगराए) जघन्योत्कृष्ट उपयोगरा में (कथरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा वा बहुयावा, तुल्ला वा, विसेसाहिया चा?) अल्प, बहुन, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ?.. (गोयमा ! सव्वत्थोवा चविखदियस्त जहणिया उवओगद्धा) हे गौतम ! सब से कम चक्षुरिन्द्रिय का जघन्य उपयोगद्धा है (सोइंदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया) श्रोत्रेन्द्रिय का जघन्य उपयोगद्धा विशेषाधिक हैं (घाणियिस्स. जहणिया उवओगद्धा विसेलाहिया) घाणेन्द्रिय की जघन्य उपयोगद्धा विशेषा-- धिक हैं (जिभिदियस्स जहणिया उचओगद्धा विसेसाहिया)-जिहवेन्द्रिय कार, जघन्य उपयोगद्धा विशेषाधिक हैं (फासिदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसे, साहिया) स्पर्शनेन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्वा विशेषाधिक हैं (उक्कोसियाएउचओगवाए सम्वत्थोचा चदिखदियस्स- उक्कोसिया उचओगद्धा) उत्कृष्ट उपःयोगद्धा में सब से कम चक्षुरिन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगद्धा है (सोइंदियस्स __ (एएसिणं भंते ! सोइं दियचत्रिंदियवाणिदियजिभिंदियफासिदियाण) उ मगवन्! . मा श्रीन्द्रिय, यक्षरिन्द्रिय, प्राणेन्द्रिय, २सनेन्द्रिय भने २५शनन्द्रियाना (जहण्णयाए उवन ओगद्धाए, उक्कोसियाए उवओगद्धीए) ४न्य उपयेादा मने Gree S५योगाराम (जहःण्णुकोसियाए उवओगद्धाए) न्योत्कृष्ट पयोमा (कयरे कयरेहि तो) नाथी । (अप्पा वा' वहुया वा तुल्ला वा, विसेसाहिया वों ?) १३५, धार, तुल्य विशेषाधि छ ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा चक्विंदियस्स जहणिया उवओगद्धा) 8 गौतम! पाथी-थोडी : यक्षुरिन्द्रियन घन्य अपयशादी छे (सोइंदियस्स जहणिया उबओगद्धा विसेसाहिया) श्री--- द्रियना धन्य उपयोग विशेष:४ि छ (पाणि दियस्स जहणिया उवभोगद्धा विसेसा-- हिया) घान्द्रयना धन्य उपयोगाचा विशेषाधि४ छ (निम्भिंदियस्स-जहणियां उवओगद्धा विसेसाहिया) लिन्द्रियना धन्य उपयोगाचा विशेषाधि४ छ (फ सिंदियस्स जहणिया उर्व, ओगद्धा विसेसाहिया) २५नन्द्रयना धन्य उपयोगाचा विशेषाधि छ । (उक्कोसियाए उबओगद्धाए सव्वत्थोना चक्खिंदियः स उकोसिया उबओगद्धा) She
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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