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________________ प्रजापना ७० ॥२॥ कुरुमन्दरावासाः कूटाः नक्षत्रचन्द्रसूराश्च । देवो नागो यक्षो भूतश्च स्वयम्भूरमणश्च ॥३॥ एवं यथा वहिः पुष्करा? भाणितस्तथा यावत् स्वयम्भूरमणसमुद्रो यावद् अद्धासमयेन नो स्पृष्टः । लोकः खलु भदन्त ! केन पृष्टः, कतिभिर्वा कार्य यथा आकाशापिग्गलः अलोका, खलु भदन्त ! केन स्पृष्टः बातिभिर्वाशायैः पृच्छा, गौतम ! नो धर्मास्तिकायेन स्पृष्टः यावद् नो आकाशास्तेि कायेन स्पृष्टः, आकाशास्तिकायस्य देशेन स्पृष्टः, नो पृथिवीकायेन (विजया) विजय (वक्खारकर्तिपदा) वक्षस्कार, कल्प, इन्द्र (अरु-मंदर-आवासा) कुरु, मंदर, आवाल (कूडा) छूट (नखत चंदमूदाय) नक्षत्र, चन्द्र और सूर्य (देवे) देव (णागे) नाग (जदखे) यक्ष(हए थ) और भूत (सरंभरमणे य) और स्वयंभूरमण __ (एक) इस प्रकार (जहा) जैसे (बाहिर पुरखरद्धे) बाय पुष्करार्ध (मणिए) कहा (तहा) उसी प्रकार (जाव सयंभूरमणसमुद्दे) यावत् स्वयंभूरमण समुद्र __ (जाव) यावत् (अहासमएणं लो फुडे) अद्धाकाल से स्पृष्ट नहीं है (लोगे णं भंते ! किंणा फुडे) हे भगवन् ! लोक किससे स्पृष्ट है ? (कहिं वा कारहि) या कितने कायों से (जहा आगासथिग्गले) जैसे आकाशधिगल-लोक) (अलोए णं भंते ! किंणा फुडे, कतिहिं वा कारहि) हे भगवन् ! अलोक किससे स्पृष्ट है, किलने कायों से (पुच्छा) प्रश्न (गोयमा! नो धम्मत्यिकाएगं फुडे) हे गौतम ! धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट नहीं (जाब) यावत् (नो आगासत्थिकाएक फुडे) आकाशास्तिकाय से स्पृष्ट नहीं (आवासस्थिज्ञायस्स देखणं फुडे) आकाशास्तिकाय के देश ले स्पृष्ट है (नो पुढविज्ञाइएणं डे) पृथ्वीकायिक से हर-दह नईओ) १°५२, ४, नहिया (विजया) विश्य (वक्खारकप्पिंदा) ११२॥२, ४८५, ईन्द्र (कुरु-मंदर-आवामा) ४३, भ ४२, मावास (कुडा) 2 (नक्खत्तचंदसूरीय) नक्षत्र, शन्द्र भने सूर्य (देवे) हेर (णागे) नाम (जस्खे) यक्ष (भूएय) मने भूत (सयंभूरमणे य) मने स्वय भूरभाष्य (एवं) में प्रारे (जहा) वा (बाहिरयुक्खरद्धे) मा ५०राध (भणिए) ४हो (तहा) और शत (जाव सयंभूरमणसमुद्दे) यावत् २१य भूरभएर समुद्र (जाव) यावत् (अद्धासमएणं नो फुडे) मद्धा ४थी स्पृष्ट नथी (लोगेणं भंते ! कि णाफुडे) मगर । नाथी २१ष्ट छ ? (कइहिं वा काएहि) मगर इसी याथी (जहा अगास थेगाले) २१ २४. 1ि8-४ (अलोएणं भंते ! कि णा फुडे, कई हि वा कारहि) 3 मसलन् ! २५ शानायी स्पष्ट छ, यी ४ाया था ? (पुच्छा) प्रश्न (गोयमा ' ना धम्मथिलाएणं फुडे) 3 गौतम ! घायथी २Yष्ट नथी (जाव) यावत् (नो आगासस्थिकारणं फुडा) मास्तिथी पृष्ट नयी (आगासस्थिकायस्स देसेणं फुडे) 2418|शत राधी पृष्ट छे. (नो पुढवि ____ - काइएणं फुडे) पृथ्वीयि४थी २Yष्ट. नथी (जाब नो अद्धासमएगं फुडे) यावत् मद्धासमयी
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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