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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद १५ सू० ५ इन्द्रियाणां विषयपरिमाणनिरूपणम् अङ्गुलस्य संख्येयभागः, उत्कृष्टेन सातिरेकाद् योजनशतसहस्रात् अच्छिम्नान् पुद्गलान् अस्पृष्टान् अप्रविष्टानि रूपाणि पश्यति, घ्राणेन्द्रियस्य पृच्छा, गौतम ! जघन्येनाङ्गुलस्यासंख्येयभाग', उत्कृष्टेन नवभ्यो योजनेभ्यः, अच्छिम्नान् पुद्गलान् स्पृष्टान् प्रविष्टान् गन्धान आजिघ्रति. एवं जिहवेन्द्रियस्यापि स्पर्शनेन्द्रियस्यापि ॥२० ५॥ टीका-अथेन्द्रियाणां विषयपरिमाणं नवमं द्वारं प्ररूपयितुमाह-'सोइंदियस्स णं भंते ! हिंतो) उत्कृष्ट बारह योजनों से (अच्छिण्णे) छेद को नहीं प्राप्त (पोग्गले) पुद्गल (पुढे) स्पृष्ट (पविठाई सद्दाई सुणेइ) प्रविष्ट शब्दों को सुनता है। ___(चक्विदियस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ?) भगवन् ! चक्षुरिन्द्रिय का कितना विषय कहा गया है ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागो) गौतम ! जघन्य अंगुल का संख्यातवां भाग (उक्कोसेणं साइरेगाओ जोयणसय. सहस्साओ) उत्कृष्ट किंचित् अधिक लाखयोजन से (अच्छिन्ले पोग्गले) अच्छिन्न पुद्गल (अपुढे) अस्पृष्ट (अपविठ्ठाई ख्वाइं पासइ) अप्रविष्ट रूपों को देखती है। (घाणिदियस्स पुच्छा ?) घाणेन्द्रिय के विषय में पृच्छा ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइ भागो) हे गौतम! जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग (उक्कोलेणं) उत्कृष्ट (णवहिं जोयणेहिंतो) नो योजनों से (अच्छिण्णे) अच्छिन्न (पोग्गले) पुदगल (पुढे) प्रविष्ट (पविट्ठाई गंधाइं अग्घाइ) प्रविष्ट गंधों को सघ ता है। (एवं जिभिदियस्स वि, फासिंदियस्स वि) इसी प्रकार जिहवेन्द्रिय का भी, स्पर्शनेन्द्रिय का भी। टीकार्थ-अब इन्द्रियों का विषय परिमाण नामक नौवां द्वार प्रतिपादन (अच्छिण्णे) छेने नही पामेल (पोग्गले) ५६ (पुढे) स्पृष्ट (पविट्ठाई सद्दाई सुणेइ) प्रपिट શબ્દને સાંભળે છે (चक्विंदियस्स ण भंते । केवइए विसए पण्णत्त ?) 8 लगवन् ! यक्षु न्द्रियनाता विषय ४९सा छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइ भागे) गौतम ! धन्य शुलना सध्यातम। HIL (उक्कोसेणं साइरेगाओ जोयणसयसहस्साओ) उत्कृष्ट थित् मधि alu योगनथी (अछिन्ने पोग्गले) मछिन्न पुगर (अपुढे) अस्पृष्ट (अपविट्ठाई रूवाई पासइ) मप्रविष्ट ३पान मेवे छ (पाणिदियस्स पुच्छा ?) प्राणेन्द्रियन विषयमा छ। (गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जड भागो) गौतम | धन्य शुसना मध्यात! Ho (उक्कोसेणं) Bee (णवहिं जोयणेहितो) नव योगनाथी (अच्छिण्णे) मछिन्न (पोग्गले) पुगस (पुद्रे) स्पृष्ट (पविटाई गंधाई अग्घाइ) प्रविष्ट धान सुधछे (एवं जिभिदियस्स वि, फार्सिदियस्स वि) એ પ્રકારે જિહુવેન્દ્રિયના પણ, સ્પશનેન્દ્રિયના પણ ટીકાથ-હવે ઈન્દ્રિયેના વિષય પરિમાણ નામક નવમાદ્વારનું પ્રતિપાદન કરાય છે
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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