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________________ प्रज्ञापनासूत्र स्तनितकुमाराणाम् , पृथिवीकायिकानां भदन्त ! किं शीता योनि:, उष्णा योनि:, शीतोष्णां योनिः ? गौतम ! शीतापि योनिः, उप्णापि योनिः, शीतोप्णापि योनिः, एवम् अब्वायुवनस्पति द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियाणामपि प्रत्येकं भणितव्यम् , तेजःकायिकानां नो शीता, उष्णा, नो शीतोष्णा, पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानी भदन्त ! किं शीता योनिः, उष्णा योनिः, शीतोष्णा योनिः ? गौतम ! शीतापि योनिः, उष्णापि योनिः, शीतोप्णापि योनिः संमूच्छिमहोती है, या शीतोष्णयोनि होती है ? (गोयमा ! लो सीता जोणी, नो उलिणा जोणी, सीतोसिणा जोणी) हे गौतम ! नशीन योनि, न उष्णयोनि किन्तु शीतोष्णयोनि होती है (एवं जाव थणियकुमाराणं) ऐसे ही स्तनित कुमारों तक (पुढविकाझ्या णं संते ! किं सीता जोणी उसिणा जोणी, सीतोसिणी जोणी?) भगवन् ! पृथिवीकायिकों की क्या शीतयोनि होती है, क्या उष्णयोनि होती है, अथवा क्या शीतोष्ण योनि होती है ? (गोयसा ! सीता वि जोणी, उसिणा वि जोणी, सीतोसिणा वि जोणी) हे गौतम ! शीतयोनि भी होती है, उष्णयोनि भी होती है, शीतोष्ण योनि भी होती है (एवं) इली प्रकार (आउ-वाउ-वणस्सइ-वेइंदिय-तेइंदिय-चरिंदियाण वि पत्तेयं भाणियब) अप्कायिकों, वायुकायिकों, वनस्पतिकायिसो, द्वीन्द्रियों, श्रीन्द्रियों, चतुरिन्द्रियों की योनि भी-कहना चाहिए (तेउकाझ्याणं णो सीता, उसिणा, णो सीतोलिणा) तेजस्कायिकों की शीतयोनि नहीं होती, उष्णयोनि होती है, शीतोष्णयोनि नहीं होती। ___ (पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! किं लीता जोणी, उसिणा जोणी, सीतोसिणा जोणी ?) हे भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यंचों की क्या शीत योनि, उप्ण (गोयमा नो सीता जोणी, नो उसिणा जोगी, सीतोसिणा जोणी) गौतम । शीतयानि नथी होती तमा न योनि डाय छे. ५२न्तु शीतयुयोनि डाय छे (एवं जाव थणियकुमाराणं) सेभ स्तनितमा। सुधी (पुढविकाइयाणं भंते ! किं सीता जोणी, उसिणां जोणी, सीतोसिणा जोणी?) लगवन् ! પૃથ્વીકાયિની શું શીતાનિ હોય છે, શું ઉoણનિ હોય છે, અથવા શું શીeણનિ हाय छ ? (गोयमा! सीता वि जोणी, उसिणा वि जोणी, सीतोसिणा वि जोणी) हे गौतम! શીત ની પણ હોય છે, ઉણની પણ હેય છે, શીતoણ ચોની પણ હોય છે (g) * २ (आउ-बाउ, वणस्सइ-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदिया वि पत्तेयं भाणियव्वं) 241४1ચિકે, વાયુકાયિક, વનસ્પતિકાયિક, હીન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિયે, ચતુરિન્દ્રિની પણ નિ કહેવી लेमे (उच्चाइयाण णो सीता, उसिणा, णो सीतोसिणा) तायिनी शीत योनि हाती નથી, ઉઘણનિ હોય છે, શીતળુનિ પણ નથી હોતી (पचिदियतिरिक्खजोणियाण मंते ! कि सीता नोणी, उसिणा जोणी, सीतोसिणा जोणी) હે ભગવન! પચેન્દ્રિય તિર્યંચોની શુ શીતાનિ, ઉણનિ અગરતે શીતેણુ ચેનિ
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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