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________________ प्रसापना मसायपरिकामेन परिणमन्त्री नविज्ञानोपाविणोऽपि भवन्ति, यावत्-सानकपाग्यणोपि, नयायायियोऽपि, लोभापायियोऽपि भवन्ति, 'लेस्सापरिणामेणं कण्हलेस्मावि' म्यापरिणामेन परिचरन्तो नरयिकाः कृपाटेश्या अपि भवन्ति, 'नीललेच्या अपि 'काउदेस्मा विभपातलेल्या अपि सन्दि. त्या च नैरयिकाणां कृष्णनीलकायोतरूपास्तिवएव मन्दि न रोप देण्याः, तापि तिहपु लेन्याइ रत्नप्रभा मर्करामभा पृथिव्योः कापोतवेश्या, वानुमाननाय कापोतदेच्या नीच्छेच्या च, पङ्कप्रभायां नीललेल्या, धूमप्रभायां नीलला कपडेश्या , तपायाम् यथासप्तस्यान्न कृष्ण लेश्यैव भवतीति भावा, 'लोगपरिणाम नपजोगी वि वयोगी नि कायजोगी दि' योगपरिणामेन परिणमन्तो नैरदिकाः मनोयोगिताऽपि, योयोगिनोऽपि, काययोगिनोऽपि भवन्ति, 'उवओगपरिणामेणं. सामानवताति, अनानागबना वि' उपयोगपरिणामेन परिणमन्तो नैरयिकाः साकारोषयुत्ता अपि भवन्ति. अनावश्यक्ता अपि च भवन्ति, पाणपरिणामेणं शाभिणिवाहि. पलानी निजानपरिणामेन परिणमन्तो नक्किाः आभिनिवोविज्ञानिनोऽपि भवन्ति, 'गुपयात शुल्तानिनोऽपि 'टोहिणाणी वि' अवधिज्ञानिनोऽपि च भवन्ति, 'अण्णागपरिणाम मह अन्जानी कि, नुय अगाणी वि, विभंगणागी वि' अज्ञानपरिणामेन परिण. भी. मायाकपाली भी और लोभकपारी भी होते हैं, लेश्या परिणाम से कृष्ण लेगा वाले, नीललेल्या वाले और कापोतलेल्या वाले होते हैं। नारकों में पही तीन लेण्या होती है, शेष तीन वेश्याग नहीं होती। इनमें से भी रत्नप्रभा और लंगप्रभा पृदियों में कापोतलेश्या, वालुकाप्रभा में कापोत वेश्या गर दीरलेश्या. पंकम मा में नीललेल्या. धूनप्रभा में नील और कृष्ण देव्या. न प्रमालमत्तमः प्रमा में सिर्फ कृष्णलेश्या ही होनी है। नो परिपान से लपेक्षा नारक जीव मनोयोगी मी, वचनयोगी भी और सानोमा बोसोते हैं। उपयोग परि गार से साकार उपयोग वाले और अनाका उपयोग वाले भी होते हैं। जान पनि गाम से मारक आभिनियोधिकज्ञानी भी हानी भी हैं और अवधिलानी सी हैं। अज्ञान परिणाम दे सत्य - પ . અને તેના છેકેશ્ય પદ મળી કુહેશ્યાવાળા, ३०.५.३ ३. नाला खाय . श्रेय * ૫ 6 તેમા થી પ રનમરા ને રામ રિપત १५... - inid mi , माननीय ५. . मिलामनी या ना२४ ११ नम१२५ ४.५ पाय है. Fee :. ५६२५ . जान.. हा बने विदा पाय
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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