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________________ प्रापना योगारिणायेन मनोयोरिनोऽपि. वचोयोगिनोऽपि, ज्ञाययोगिनोऽपि, उपयोगपरिणामेन मासारोपयुला अपि, नसारोपयुन्ना अपि, ज्ञानपरिणामेन आसिनियोधिकज्ञानिनोऽपि, शुक्तानिनोऽपि. अबधिनानिनोऽपि, अज्ञानपरिणामेन सत्यज्ञानिनोऽपि, श्रुताज्ञानिनोऽपि, विमतानिनोऽपि. वर्मपरिणामेन खस्यग्दृष्टयोऽपि, पियवाहष्टयोऽपि, सम्यग्मिथ्यादृष्टयोऽपि. चारित्रपरिणामेन नो चागिवेग, नो चारित्र चारित्रिणः, अचारित्रिणः, वेदपरिणामेन ने लीवेटकाः, नो पुरुषवेदनाः, नपुं-नावेदकाः, अलुरकुमारा अपि एवञ्चैव, नवरं से शोध कपाची की चावत् लोभकपाई भी हैं (टेल्सापरिणामेणं काह लेस्सावि, नीलले सावि, काउलेखावि) लेश्या परिणाप से कृष्णलेश्या वाले भी, नीललेश्या बाले भी, कालोनलेश्या वाले भी (जोगपरिणामेणं) योग परिणाम से (मगजोगी वि, वजोगी वि, कायजोगी वि) मनोयोग वाले सी, वचनयोग वाले भी, वाश्योग वाले भी (उपओगपरिणामेणं सागारोघउतावि, अणागारोब उत्तावि) उपयोग परिणाम से साक्षारोपयोग वाले भी, अनाकारोपयोग .वाले भी (णामपरिणानेणं आसिणियोहिणाणीधि, सुयणाणीवि, ओहिणाणीदि) जान परिणाम से आभिनियोधिक ज्ञानी भी, श्रुनज्ञानी भी, अवधिज्ञानी भी (अण्णाणपरिणानेणं) अज्ञान परिणाय से (माइअण्णाणी वि, सुय अपगाणी थि, विभंगणाणी वि) सत्यज्ञानी भी, शुताझाली भी, विभंग ज्ञानी भी ( दंगपरिणामेणं) दर्शन परिणामले (सम्लदिट्टीवि, मिच्छादिडीवि, सम्मामिचाविधीविनम्यष्टि भी, लिथया दृष्टि मी सम्बग्मिथ्या दृष्टि भी (चरित्तपरिणामे मो चरित्ती, गो चरित्ताचरित्ती, अचरिती) चारित्र परिणाम से न चारित्रवान है, न चाग्निाचरित्र-देशचारित्र वाले हैं, अचारित्री हैं मसाई पि जाव लोडकसायो पि) ४य परामरी बोध यी ५ यावत् सोन पायी प रिमानेणे, करोसा दि, नीलमा वि, कारलेम्सा वि) २५। परिणामयी PP ५, नीan nt ur!, पेन सेश्या ५e (जोगपरिणामेण) शोर मियी (३.गानी वि. वबजोगी चि, कायजोगी वि) भन योगदाणा पy, नये ११rmer या Ar! (ओगपरिणामेणं सागायउता वि, अणा. જ ધ) ઉપગ પરિમથી સાકાર પગવાળા પણ, થાકારપગવાળા પણ ( भिगिनगाणी निवाणी वि ओरिणाणी विज्ञान परिणामयी नानी ५, २५11नी ५', (अणाणपरिणाण) अज्ञान or pil (म मी निरागाणा वि. गिगामी वि) भा५नी 24, शुता ज्ञानी " पिजिनेज न मिश्री (उमाल्द्विी नि, मिच्छा दिष्टि farmi , IRA, ५२ मिट पर चरित्तपीन गोपीना रिती, जरिनी) रि: शियान यात्रिपान छ ।
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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