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________________ : ४६५ प्रज्ञापनासूर्य वि, तेया कराया जहा एएसिं चेव ओरालिया, एवं आउकाइया तेउकाइया वि । वाउकाइयागं अंते ! केवइया ओरालिय सरीरा पण्णता? गोयना ! दुविहा पण्णता, तं जहा-बधेल्लगा य मुक्केल्लगा य, दुविहा वि जहा पुढविकाइयाणं ओरलिया, वेउठिबयाणं पुच्छा, गोयमा ! दुविहा पम्णता, तं जहा-बधेल्लगा य खुक्केल्लमा य, तत्थ णं जे ते बधेल्लगा ते णं असंखेजा समए सहए अवहीरमाणा अबहीरमाणा पलियोवमस्ल असंखेजड़भागमेतेण कालेणं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया लिया, सुक्नेल्लगा जहा पुढविकाइयाणं, आहारगतया कम्मा जहा पुढवीकाइयागं, वणफइकाइयाणं जहा पुढविकाइयाणं, णवरं तेया कामगा जहा ओहिया तेरा कामगा, बेइंदियाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरगा पण्णता ? गोयमा ! दुविहा पण्णता, बधेल्लगा य मुक्केल्लगा य, तत्थ णं जे ते वधेल्लगा तेणं असंखेज्जा, असंखेजाहिं उस्सपिणिओ-सप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असखेज्जाओ सेढीओ पयरस्त असंखेजइ भागे, लालिणं सेढीणं विक्खभसूई, असं खेजाओ जोयणकोडाकोडीओ असंखेज्जाइंसेदिवगमूलाइं॥सू० ५॥ ___ छाया-पृथिवी कायिकानां भदन्त ! कियन्ति औदारिकशरीराणि प्रज्ञतानि ? गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि ? तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि च, तत्र खलु यानि तावद् बद्धानि तानि पृथ्वी कायिकादिक के शरीर शब्दार्थ-(पुढधिकाझ्याणं भंते ! केवड्या ओरालियसरीरगा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के औदारिक शरीर कितने कहे गए हैं ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बधेल्लगा य मुक्केल्लगा थ) हे गौतम ! दो प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकार-बद्ध और मुक्त (नत्य णं जे ते वधेल्लगा ते णं असंखेजा) उनमें जो वद्ध हैं, वे असंख्यात है (असखेजाहिं उत्सपिणि ओसप्पि પૃથ્વીકાયિકાદિના શરીર Awar-(पुढविकाइयाणं भंते । केवइया ओरालियसरीरगा पण्णत्ता) भगवन् ! पृथिवी४ायिना मोहा४ि शरी२ १८८i ह्या छ ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता तं जहा) गौतम ! मे प्रधान या छे. ते मारे छे-अद्ध भने भुत (नत्य णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा) तमाम मद्ध छ, तसा सभ्यात छे (असंखेजाहिं उत्सपिणि-ओसपिणोहि अवहीरंति
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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