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________________ লাশয় ग्योनिकाः वलु भदन्त ! किम् पाहारगपगुना, चानन पनिटकोपमा ? गीतम! उत्सन्नं कारणं प्रतीत्य आहारसंजोपयुक्ताः, रंग-गिमा नीच मानसपयुक्ता अपि, यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्ता अपि, एतेषां खलु भवन्त ! नियमोनिशाना साजोपयुक्तानां यावत् परिग्रहसनोपयुक्तानाञ्च घबरे करेन्योल्मा , गल्या या विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकान्तिपोनिका परिवानगोपना, भयुनायूना: (तिरिक्खजोणियाणं संते ! किं आहारलनोकता जान्न परिकमान्नोवउत्ता?) हे भगवन् ! तिर्यग्नोनित त्या आहरजा में प्रयुक्त होते हैं ? गायन परिग्रहसंज्ञा में उपयुक्त होते है ? (गोकता: आम का ८) गौतम ! बहुलता से चाय कारण की अपेक्षा से (शाहारानीवस्ता) आपनशा के उपयोग वाले होते हैं (संतभावं पानच) आन्तरिक अनुभव की अपेक्षा (आहारसं. नोवउत्ता वि जाय परिग्गासमोबउता दि) आहा जा में भी उपयुसा होते हैं, यावत् परिग्रहसंज्ञा में भी उपयुक्त होले हैं। ___ (एएसि णं मते ! तिधिवजाणियाणं आहारमनीयमाणं जाब परिन्गहसन्नोवउत्ताण य) हे भगवन् ! इन आहार संज्ञा में उपयुत्ता चावत् परिग्रहमंज्ञा में उपयुक्त तिर्यचों में (कचरे कयरहितो) कौन लिसे (अप्पा बा, हुया बा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ?) अल्प, बाहुन, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? (गोयमा ) हे गौतम ! (सव्वधोया) सर से कस (निरिक्वजोणिया) तिर्यन्योनिक (परिग्गहसन्नोवउत्ता) परिग्रहसंज्ञा में उपयुक होते हैं (मेहुणयन्नोवत्ता संखेज्जगुणा) मैथुनसंज्ञा में उपयोग वाले संख्यातगुणा है (भयसन्नोवत्ता (तिरिक्खजोणियाण मंते ! किं आहारसन्नोवउत्ता, जाय परिगहमलोला ?) से ભગવદ્ ! તિર્યક્રયેનિક શું આહાર સંજ્ઞામાં ઉપયુક્ત છે, ચાવત્ પરિગ્રહ સંસામાં ઉપયુક્ત થાય છે? (गोयमा | ओसन्नं कारणं पडुच) गौतम ! सताक्षी ६ ६.२४ानी अपेक्षा 43 (अहारसन्नोवउत्ता) मा २ स साना उपयोगयागा याय (संतइमा पन्च) मान२ि४ भनुमपनी अपेक्षाये (आहारसन्नोउत्ता न जाय परिगाहमानोव उत्ता वि) २॥२ से ज्ञामा પણ ઉપયુક્ત થાય છે, યાવત્ પરિગ્રહ સત્તામાં પણ ઉપયુક્ત થાય છે (एएसिणं भंते! तिरिक्खजोणिचाणं आहारसन्नोवउत्ताण जार परिगहनन्नोवत्ताण य) હે ભગવન્ ! આ આહાર સત્તામાં ઉપયુક્ત યાવત્ પરિગ્રહ સંગ્રામાં ઉપયુક્ત તિર્યમાં (कयरे कयरे हितो) आy नाथी (अप्पा वा बटुवा वा तुल्ला वा विसेसाहियावा ?) १८५, ઘણાં તુલ્ય અથવા વિશેષાધિક છે? (गोयमा ) 3 गौतम ! (सब्बत्योवा) अधाथी माछा (तिरिक्खजोणिया) तिय योनि (परिगहसन्नोवउत्ता) परियार सामा ५युत थाय छे (मेहुणसन्नोवउत्ता सखेज्जगुणा)
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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