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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ११ सू० १३ वचनस्वरूपनिरूपणम् ४०७ .. टीका-भाषा प्रस्तावात् तद् विशेषरूप वचनवक्तव्यतां प्ररूपयितुमाह-'कइविहेणं भंते ! 'वयणे पण्णत्ते ?' गौतमः पृच्छति हे भवन्त ! कतिविधं खलु वचनं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह'गोयमा !' हे गौतम ! 'सोलसविहे वयणे पण्णत्ते' षोडशविधं वचनं प्रज्ञप्तम् 'तं जहा- एगवयणे दुवयणे बहुवयणे' तद्यया १ एकवचनम्-मनुष्य इति यथा, सद्विवचनम्-मनुष्यौ इति यथा, ३ वहुवचनम्-अनुष्या इति यथा, ४-इथिवरणं' 'वचनम्-इयं नारी इति यथा, ५ 'पुमत्रयणे' पुंवचनम्-पुल्लिङ्गवचनम्-यथा अयं पुमान् इति, ६-‘णपुंसगवयणे' नपुंसकवचनम्-इदं वनमिति यथा, ७-'अज्झत्थक्यणे' अध्यात्मवचनम्-यथा मनसि किञ्चि. एक वचन को यावत परोक्ष वचन को बोलता हुआ (पण्णवणी गं एसा भासा) यह भाषा प्रज्ञापनी है (ण एसा भासा मोला) यह भाषा मृषा नहीं है। टीकार्थ-भाषा का प्रसंग होने से भाषा के एक विशिष्ट रूप वचन का यहां प्रतिपादन किया जाता है गौतम प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! वचन कितने प्रकार के कहे गये हैं? भगवान्-हे गौतम ! वचन सोलह प्रकार का है । वे सोलह प्रकार यों हैं(१) एक वचन-जैसे मनुष्यः अर्थात् एक मनुष्य । (२) द्विवचन-द्वित्व का प्रतिपादक, जैसे 'मनुष्यो' अर्थात् दो मनुष्य । - (३) बहुवचन-बहुत्व का प्रतिपादक, जैसे 'मनुष्याः ' अर्थात् बहुत-से मनुष्य (४) स्त्रीवचन-स्त्रीत्व का प्रतिपादक, जैसे नारी'। ., (५) पुरुषवचन-पुलिंगवाचक, जैसे-'पुमान्' । .. (६)नपुसकवचन-नपुंसकत्व वाचक, जैसे 'वनम्। भाषा भृषा नथी ? (हंता गोयमो इच्चेइतं एगवयणं वा जाव परोक्खवयणं वा वदमाणे) हो, गौतम । ये सारे मे क्यनने यावत् ५२।क्ष पयनने मारता (पण्णवणीणं एसा भासस) मा भाषा प्रज्ञापनी छे (ण एसा भासा मोसा) मा भाषा भूषा नथी. ટીકાઈ–ભાષાને પ્રસંગ હોવાથી ભાષાના એક વિશિષ્ટ રૂપ વચનનું અહીં પ્રતિ. પાદન કરાય છે શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે હે ભગવન ! વચન કેટલા પ્રકારના કહેલા છે? - શ્રી ભગવાન હે ગૌતમ! વચન સળ પ્રકારના છે. તે સોળ પ્રકાર આ પ્રમાણે છે. (१) मे४ क्यन-भ मनुष्यः २मर्थात् से मनुष्य. (२) द्विवयन-विपनु प्रतिपा, रेभ. 'मनुष्यो' अर्थात् में मनुष्य, (3) क्यन-पनु प्रतिपा४, म 'मनुष्या" अर्थात् घg मनुष्य। (४) श्री यन-श्रीत्वनु प्रतिया, म 'नारी' । (५) पु३५वयन-पुnि पायम 'पुमान्' । (6) नपुंस: क्यन-नस पाय रेभ 3-'वनम्'
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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