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________________ ३१२ प्रशापनासने माया लोभे पिज्जे तहेव दोसे य । हासभए अक्खाइय उवधाइय णिस्सिया दसमा ॥१॥ क्रोधो, मानं, माया, लोभः प्रेम तथैव द्वेषश्च । हास्यं भयम् आख्यायिका उपघातनिःमृता दशमी ॥१॥ गौतमः पृच्छति-'अपज्जत्तिया ण भंते ! काविहा भासा पण्णत्ता ?' हे भदन्त ! अपर्याप्तिका खलु भापा कतिविधा प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'दुविहा पण्णत्ता' अपर्याप्ता भाषा द्विविधा प्रज्ञप्ता, 'तं जहा-सच्चा मोसा असच्चा मोसा य२' तद्यथा-सत्यामृपा, असत्यामृपा च, गौतमः पृच्छति-'सच्चा मोसा गं भंते ! भासा अपज्जत्तिया कतिविहा पण्णत्ता ?' हे भदन्त ! सत्या मृषा खलु भाषा अपर्याप्तिका कतिविधा प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'दसविहा पण्णत्ता' अपर्याप्ता सत्या मृपा भाषा दशविधा प्रज्ञप्ता, 'तं जहा-उप्पण्णमिस्सिया १' तद्यथा-उत्पन्नमिश्रिता ?, 'विगतमिस्सियार' विगतमिश्रिता२ 'उप्पण्णविगरमिस्सिया ३' उत्पन्न विगतमिश्रित्ता, 'जीवमिस्सिया४' माया (४) लोभ (५) प्रेम (राग) (६) द्वेष (७) हास्य (८) भय (९) आख्यायिका और (१०) औपघातिक, इनसे निकली हुई भाषा मृषा भाषा है। ॥१०॥ _ गौतमस्वामी पुनः प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! अपर्याप्तिका भाषा के कितने भेद है ? .. ___ भगवान-हे गौतम ! अपर्याप्तिका भाषा दो प्रकार की कही गई है-एक सत्यामृषा अर्थात् उभयरूप (मिश्र) भाषा, दूसरी असत्याचा अर्थात् व्यवहार भाषा जिसे न सत्य और न असत्य में ही गिना जाता है। इसे अनुभय भापा भी कहते हैं। गौतमस्थामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! सत्याभूषा अपर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की कही गई है ? __ भगवान-हे गौतम ! सत्यामृषा अपर्याप्तिका भाषा दस प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है-(१) उत्पन्नमिश्रिता (२) विगतमिश्रिता (३) उत्पन्न विगत(४) सोल (५) प्रेम (6) द्वे५ (७) हास्य (८) मय () आध्यायि४मन (१०) मौ५ઘાતિક, એમનાથી નીકળેલી ભાષા મૃષા છે ૧ શ્રી ગૌતમસ્વામી પુન પ્રશ્ન કરે છે–હે ભગવન્ ! અપર્યાપ્તિક ભાષાના કેટલા ભેદ છે? શ્રી ભગવાન હે ગૌતમ! અપતિક ભાષા બે પ્રકારની કહેલી છે–એક સત્યા મૃષા ભાષા અર્થાત્ ઉભય રૂપ (મિશ્ર) ભાષા બીજી અસત્ય મૃષા અર્થાત્ વ્યવહાર ભાષા જે ન સત્યમ કે ન અસત્યમાં ગણાય છે. તેને અનુભય ભાષા પણ કહે છે. શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે-હે ભગવાન્ ! સત્યા મૃષા અપર્યાસિકા ભાષા કેટલા પ્રકારની કહેલી છે ? શ્રી ભગવાન–હે ગૌતમ ! સત્યાગ્રુષા અપર્યાસિકા ભાષા દશ પ્રકારની કહેલી છે, તે આ प्रहार छ :-(१) अपन मिश्रिता (२) गित मिश्रिता (3) उत्पन्न वित मिश्रिता (४)
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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