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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद ११ सू. ४ वचनविशेपनिरूपण २९१ भाषा पुमाज्ञापनी-पुंस:-पुंल्लिङ्गस्य आज्ञापनी-प्रतिपादिका, धान्यमिति भाषा नपुंसकाज्ञापनी किं प्रज्ञापनी खलु एपा भाषा भवति ? नैपा मापा मृपा भवति ? भगवानाह-'हंता, गोयमा ! पुढवित्ति इत्थि आणमणो, आउ ति म ाणमणी, धणेत्ति गपुंसगाणमणी पण्णवणीणं एसा भासा ण एसा भासा मोसा' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् , पृथिवी इति वाक् ख्याज्ञापनी, आप इति वाक् पुमाज्ञापनी, धान्यमिति नपुंसकाज्ञापनीवाक् प्रज्ञापनी सत्या खलु एपा भाषा भवति, नेपा भाषा मृपा-मिथ्यारूपा भवति, उक्त स्थलत्रयेऽपि क्रमशः प्राधान्येन स्त्रीलिङ्गपुंल्लिङ्गनपुंसकलिङ्गानामेव विवक्षितत्वेन तद्विशिष्टानामेव तिरोहितान्यधर्माणां पृथिवी-अपू -धान्यरूपधर्मिणां प्रतिपादकत्वात् , गौतमः पृच्छति-'अह भंते ! पुढवीति इत्थि पण्णवणी, आउ ति पुमपण्णवणी एण्णत्ति णपुंसगपण्णरणी आराहणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा' हे भदन्त ! अथ पृथिवी इति स्त्रीप्रज्ञापनी-स्त्रीलिङ्गविशिष्टार्थप्रतिपादिका, आप इति पुंप्रज्ञापनी-पुंल्लिङ्ग विशिष्टार्थप्रतिपादिका, धान्यमिति नपुंसकप्रज्ञापनी-नपुंसकलिङ्गविशिस्त्री-आज्ञापनी भाषा है, अर्थात् स्त्रीलिंग की आज्ञापनी है, 'आप' यह भाषा पुं-आज्ञापनी अर्थात् पुल्लिा की प्रतिपादक भाषा है, "धान्यम्' यह नपुसकाज्ञापनी भाषा है, सो क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? यह भाषा मृषा नहीं है ? भगवानू-हां गौतम ! 'पृथिवी' यह स्त्री-आज्ञापनी भापा, 'आप:' यह पुरुष-आज्ञापनी भाषा और 'धान्यम्' यह नपुंलक आज्ञापनी प्रज्ञापनी है-सत्य है। यह भाषा वृषा नहीं है, क्योंकि उक्त तीनों स्थानों पर क्रमशः स्त्रीलिंग. पुलिंग और नपुंसकलिंग की ही विवक्षा होने से, उन्हीं से विशिष्ट तथा अन्य धों को गौण करके, पृथिवी, अप् और धान्य रूप धर्मों का यह भाषा प्रतिपादन करती है। गौतमस्वामी पुनः प्रश्न करते हैं-'पृथिवी' यह स्त्री प्रज्ञापनी भाषा, 'आप' यह पुल्लिगविशिष्ट अर्थ का प्रतिपादन करने वाली भाषा और 'धान्यम्' यह नपुंसक प्रज्ञापनी भाषा क्या आराधनी भाषा है ? जिस के द्वारा मोक्षमार्ग पनी भाषा है, अर्थात् स्त्रीसिनी माज्ञापनी छे आप.' थे मापा पु माज्ञापनी मर्थात् गिनी प्रतिपा६४ साषा छ, 'धान्यम्' से नसापनी साषा छे, तो शुत भाषा પ્રજ્ઞાપની છે? એ શું મૃષા ભાષા નથી? श्री भगवान्- गोतम ! 'पृथ्वी' से स्त्री माज्ञापनी लाषा, 'आप.' से ३५ माज्ञापनी भाषा मने 'धान्यम्' से नए स४ माज्ञापनी लापा प्रजापनी लाषा छ-सत्य ભાષા છે આ ભાષા મૃષા નથી. કેમકે ઉક્ત ત્રણે સ્થાન પર ક્રમશઃ સ્ત્રીલિંગ પુલિંગ અને નપુંસકલિંગની જ વિવક્ષા હોવાથી, તેઓથી વિશિષ્ટ તથા અન્ય ધર્મોને ગૌણ કરીને પૃથ્વી, આપૂ અને ધાન્ય રૂપ ધર્મનું આ ભાષા પ્રતિપાદન કરે છે. श्री. गौतमस्वामी पुनः प्रश्न ४२ छ-'पृथ्वी' से सी माज्ञायनी लाषा 'आप' से Yen विशिष्ट मनु प्रतिपादन ४२वापाजी भाषा भने 'धान्यम्' थे नसप्रज्ञा
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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