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________________ प्रज्ञापनासूत्रे च.चरमाणाञ्च चरमान्तप्रदेशानाञ्च अचश्मान्तपदेशानाञ्च द्रव्यार्थतया प्रदेशार्थचया द्रव्यार्थप्रदेशार्थ तया कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, बहुका बा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! यथा संख्येयप्रदेशिकस्य संख्येयप्रदेशावगाढस्य नवरं संकृमे खलु अनन्तगुणाः, एवं यावत् आयतम् परिमण्डलस्य खलु भदन्त ! संस्थानस्य अनन्तप्रदेशिकस्य असंख्येयप्रदेशावगाढस्य अचरमस्य च चरमाणाञ्च- चरमान्तप्रदेशानाञ्च अचरमान्तप्रदेशानाञ्च यथा रत्नप्रभायाः, नवरं संक्रमे अनन्तगुणाः, एवं यावद् आयतम् ॥ सू० ॥ ६॥ रिमस्स य चरमाण य चरसंतपएलाण य अचरसंतपरसाण य) अचरम, चरमाण, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्तप्रदेशों में (दव्वट्ठयाए, पएसट्टयाए, दव्यद्रुपएसट्टयाए) द्रव्य से, प्रदेशों से, द्रव्य-प्रदेशों से (कयरे कयरहितो) कौन किससे (अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? (गोयला ! जहा संखेज्जपएसियरस संखेजपएसोगाढस्स) गौतम ! जैसी संख्यात प्रदेशों से अवगाढ संख्यातप्रदेशी की वक्तव्यता कही वैसी जनना (नवरं) विशेष (संकमेणं) संक्रमण से (अणंतगुणा) अनन्तगुणा हैं(एवं जाव आयते) इसी प्रकार आयत संस्थान तक । (परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्ल अर्णतपएसियस्स असंखेज्जपएसोगाढस्स) भगवन् ! अनन्तप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशों में अवगाढ परिमंडल संस्थान के (अचरमस्स) अचरमका (य) और चरमान्त आदि का अल्पवहुत्व (जहा रयण. प्पभाए) जैसे रत्नप्रभा का (नवरं) विशेष (संकमे अगंलगुणा) संक्रम में अनन्तगुणा (एवं जाब आयते) इसी प्रकार आयत संस्थान तक। सध्यात प्रदेशमा माद मनन्त प्रदेशी परिभस स स्थानना (अचरिमस्स य चरमाण य चरमंतपएसाण य अचरमंतपएसाण य) अयरम, यमायु, २२मान्त अशा सने भयरमान्त प्रदेशमा (दव्वट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वट्टपएसट्टयाए) द्रव्यथी, प्रशाथी, द्रव्य प्रशाथी (कयरे कयरे हितो) है। जोनाथी (अप्पा वा, वहुया वा तुल्ला वा विसे. साहिया वा ?) १८५, घना, तुझ्य, अथवा विशेषाधि४ छ ? (गोयमा । जहा संखेजपएसोगाढस्स) हु गौतम ! २वी सच्यात प्रदेशमा अवd सध्यात प्रशीनी वतव्यता ४ही छ तेकी १ लपी (नवर) विशेष (स कमेण) स४. भाथी (अणतगुणा) अनन्त छ (एवं जाव आयते) से प्रहारे भायत संस्थान सुधी. (परिमंडलस्स णं भते ! संठाणस्स अंणतपएसियस्स असं खेज्जपएसोगाढस्स) 3 HIवन् अन तशी असभ्यात प्रशामा अगाट परिभस संस्थानना (अचरमस्स) भन्य२. भान्तनु (च) भने यभान्त माहनु हमहुत्व (जहा रयणप्पभाए) २ प्रमाणे २नप्रभानु ४थन ध्यु छे. ते प्रभा (नवर) विशेष (संकमे अणंतगुणा) सममा मनतगया Kा . (एव जाव आयते) मेकर ममाप्य यावत मायत संस्थान संधी समार
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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