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________________ १७६ raterres परिमंडल णं अंते ! संठाणस्स असंखे नपएलियस्स असंखेनपएसो गाढस्त अचरमहरू चरमाण य चरसंतपएसाण य अचरमंतपरसाण य दव्वट्टयाए पट्टयाए दुव्वटुपए सट्याए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयला ! जहा रयणप्पभाए अप्पाबहुयं तव निरवसेसं भणियव्वं एवं जाव आयए, परिमंडलस्स पणं भंते । संठाणस्स अणतपएसियस्स संखेजपए सोगाढस्त अचरिमस्स य चरमाण य चरसंतपरसाण य अचरमंतपसाण य दव्वटुयाए पएसट्टयाए दव्बट्टपसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ? गोयसा ! जहा संखेज्जपएसो गाढस्स, नवरं संक मेणं अनंतगुणा, एवं जाव आयए । परिमंडलस्स णं भंते । संठाणस्स अणतपएसियस्त असंखेज्जपएसोगाढस्स अचरमस्स य जहा रयण भाए, नवरं संकमे अणंतगुणा, एवं जाव आयए ॥ सू० ६ ॥ छाया-कति खलु भदन्त ! संस्थानानि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! पञ्च संस्थानानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा- परिमण्डलम्, वृत्तम्, त्र्यस्रम्, चनुरस्रम्, आयतं च, परिमण्डलानि खलु भदन्त ! संस्थान वक्तव्यता शब्दार्थ - ( क णं भंते ! संठाणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! संस्थान कितने कहेहैं ? (गोमा ! पंच संठाणा पण्णत्ता) हे गौतम ! पांच संस्थान कहे हैं ? (तं जहा) वे इस प्रकार (परिमंडले) परिमंडल (बट्टे) वृत्त (तंसे) त्र्यत्र - तिकोना (चउरंसे) चौकोर (आयते य) और आयत - लम्बा (परिमंडला णं भंते ! संठाणा किं संखेजा असंखेजा, अनंता ?) हे भगवन् ! परिमंडल संस्थान क्या संख्यात हैं, असंख्यात अनन्त हैं ? (गोमा ! नो संखिजा, तो असंखिज्जा, अनंता) हे गौतम ! संख्यात સસ્થાન વક્તવ્યતા शब्दार्थ - (कणं भंते ! संठाणा पण्णत्ता १) हे भगवन् । संस्थान डेटा ह्या छे ? !पंच संठाणा पण्णत्ता) हे गौतम! पांय संस्थान ह्या छे (तं जहा ) तेथे भी (परिमंडले) परिभउस ( वट्टे) वृत्त (तंसे) त्रिअणु-यस (चउर से ) तुष्हीए (आय मने आायत (सांगा) (परिमंलाणं भंते! मंठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणता ?) हे भगवान् ! परिभ उस 'भ्यात हो? या है ? अनन्त है ? (गोयमा ! तो संखिज्जा, नो असं खिज्जा - "
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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