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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १० सू. ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चरमाचरमत्वनिरूपणम् १५९ 3 स्तात् वर्तेते, द्वौ च श्रेणिद्वय मध्यभागसमश्रेणिस्थे चैकस्मिन् आकाशप्रदेशे वर्तेते तदा द्वौ परमाणू द्विप्रदेशावगाढ प्रदेशिकस्कन्धवदुपरितन द्विप्रदेशावगाढौ चरमः, द्वौ चाद्यस्तन, द्विप्रदेशावगाढौ चरम इति चरमौ द्वौ चैकप्रदेशावगाढौं परमाणुवदवक्तव्यः इति तत्समुदायाः त्मक पट्प्रदेशिकस्कन्धोऽपि - 'चरमौ चावक्तव्यश्च' इति व्यपदिश्यते, 'सिय चरमाई चं अवतवयाई य १४' षट्प्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् - कदाचित् 'चरमौ चावक्तव्यौ च' इति व्यप दिश्यते । तथाहि यदा पट्प्रदेशिकः स्कन्धो वक्ष्यमाणत्रयस्त्रिंशस्थापनारीत्या ३३ समश्रेण्या, विश्रेण्या च पट्ट्ट्वाकाशप्रदेशेषु अवगाहते तत्र द्वौं परमाणू समश्रेण्या व्यवस्थितयो द्वयोराकाशप्रदेशयोः वर्तेते, द्वौ च परमाणू तयोरेव समश्रेणिव्यवस्थितयोराकाशप्रदेशयोरधस्तात् वर्तेते, एकश्च परमाणु' श्रेणिद्वयमध्यभागसमश्रेणिस्ये प्रदेशे, एकस्तु उपरितनयोर्द्वयोर्विश्रेणिस्थे तदा परमाणु दोनों श्रेणियों के मध्य भाग में समश्रेणी में स्थित एक आकाशप्रदेश में रहते हैं, तब दो परमाणु, दो प्रदेशों में अवगाढ द्विप्रदेशी स्कंध के सदृश, के दो प्रदेशों में जो अवगाढ हैं, वे 'चरम' कहलाते हैं और जो नीचे के दो 'प्रदेशों में अवगाढ़ हैं, वे भी चरम कहलाते हैं, इस प्रकार दोनों चरम 'चरमौ ' हुए और एक प्रदेशावगाढ दो परमाणु, केवल परमाणु के समान 'अवक्तव्य' हैं । अतएव उनका समूह षट्पदेशी स्कंध भी 'चरमौ - अवक्तव्य' कहलाता है । ऊपर देशी स्कंध 'चरमौ - अवक्तव्यौ' भी कहा जाता है । वह इस प्रकार - जब कोई षट् प्रदेश- स्कंध आगे बतलाई जाने वाली तेतीसवीं स्थापना के अनुसार समश्रेणी एवं विश्रेणि से छह आकाशप्रदेशों में अवगाहन करता है, उन में से दो परमाणु समश्रेणी में स्थित दो आकाशप्रदेशों में रहते हैं, दो परमाणु उन्हीं समश्रेणि में स्थित आकाशप्रदेशों के नीचे रहते हैं, एक परमाणु दोनों श्रेणियों के मध्यभाग की समश्रेणी में स्थित प्रदेश में रहता हैं, और एक परमाणु दोनों के ऊपर विश्रेणि में रहता है, तब ऊपर के दो परमाणु 'चरम' कहસમ્રશ્રેણીમા સ્થિત એક આકાશ પ્રદેશમાં રહે છે. ત્યારે એ પરમાણુ એ પ્રદેશેામાં અવईमाढ द्विप्रदेशी २४न्धना सदृश अपरना मे प्रदेशोस ? भवगाढ छे ते 'चरम' वायु છે અને જે નીચેના એ પ્રદેશમાં અવગાઢ છે તેઓ પણ ચર્મ કહેવાય છે. એ પ્રકારે અન્ત્ ५२भ 'चरसौ' थया सने ४ प्रदेशावगाढ मे परमाणु, देवण परमाणुना समान 'अवकृतव्य छे. तेथी ४ तेमनी समृद्ध षट्पदेशी २१ प 'चरमौ - अवक्तव्य' वाय . षट्यदेशी २४न्६ ‘चरमौ-अवक्तव्य' हवाय हे ते या रीते न्यारे अर्ध पटू પ્રદેશ સ્કન્ધુ આગળ ભુતાવેલી તેત્રીસમી સ્થાપનાના અનુસાર સમશ્રેણી તેમજ વિશ્રેણીથી છએ આકાશ પ્રદેશમાં અવગાહન કરે છે. તેએમાથી એ પરમાણુ 'સમશ્રેણીમાં સ્થિત એ આકાશ પ્રદેશોમાં રહે છે, એ પરમાણુ તેજ સમશ્રેણીમા સ્થિત આકાશ પ્રદેશની નીચે રહે છે, એક પરમાણુ અને શ્રેણીઓના મધ્ય ભાગની સમશ્રેણીમાં સ્થિત પ્રદેશમાં રહે
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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