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________________ जीवाभिगमसूत्रे हाए सव्व उवरिल्ले तारारूवे० ? गोयमा ! सच हेठिल्लाओ णं दसहि जोयणेहिं सूरविमाणे०, णउतीए जोयणेहि अवाहाए चंदविमाणे०, दमुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्योवरिल्ले तारारू वे०' सर्वाधरतनात् खलु भदन्त ! तारारूपात् कियदवाधया कृत्वा सूर्यविमानं०, कियदवाधया कृत्वा चन्द्रविमानं०, कियदबाधया कृत्वा सर्वोपरितनं ताराविमानं चारं चरति ? भगवानाह-हे गौतम ! सर्वाधस्तनात् तारारूपात् दशयोजनानि सूर्यविमान०, ततस्तारामण्डलात्-नवति योजनानि अवाधया कृत्वा चन्द्रविमानं०' तत एव अधस्तनात्तारारूपाद् दशोत्तरं योजनशतम् अवाधया कृत्वा सर्वोपरितनं तारारूपं ज्योतिपं मण्डलगत्या चारं चरतीति संक्षिप्तोऽर्थः । 'सूरविमाणाओ णं भंते ! केवइयं अवाहाए चंदविसब से नीचे जो तारारूप ज्योतिषी देव हैं उनसे कितने ऊपर सूर्य का विमान मंडलगति से परिभ्रमण करता है ? 'केवइयं अवाहाए चंदविमाणे चारं चरई ? केवतियं आवाहाए सव्वउवरिल्ले तारास्वे चारं चरई' कितनी दूर पर चन्द्रमा का विमान मंडलगति से परिभ्रमण करता है ? और कितनी दूर पर सब से ऊपर के जो तारारूप ज्यो. तिषी देव हैं उनका विमान चलता है ? इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभु कहते है 'गोयमा ! सचहेहिल्लाओणं दसहि जोयणेहिं सूरविमाणे चार चरह' हे गौतम ! सब से नीचे का जो तारारूप विमान है उससे १० योजन ऊपर सूर्य का विमान चलता है ‘णउत्तीए जोयणेहि अवाधाए चंदविमाणे चारं चरइ' ९० योजन ऊपर चंद्र का विमान चलता है 'दसुत्तरे जोयणसए अबाधाए सव्योपरिल्ले तारास्वे चारं चरई' और ११० योजन ऊंचे ऊपर के तारारूप विमान चलते हैं 'मूरविमाटमा ५२ सूर्य विमान म जतिथी परिश्रम ४२ छ ? 'केवइयं अवा. हाए चंदाविमाणे चार चरइ वेवइयं अवाहाए सव्व उवरिल्ले तारारूवे चार રજુ કેટલે દર ચંદ્રમાનું વિમાન મંડલ ગતિથી પરિભ્રમણ કરે છે? અને કેટલે દૂર પર સૌથી ઉપરના જે તારા રૂપ જોતિષી દે છે. તેમનું વિમાન या छ ? या प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -'गोयमा। सब्वहेछिल्लाओणं दसहि सुरविमाणे चार चरइ' गौतम । सौथी नीयनु २ ॥ ३५ विभान छ, तनाथ १० इस यो- S५२ सूर्यन विमान याले छे. 'णउए हिं जोयणेहिं अबाधाए चंदविमाणे चार चरई' ८० न्यु योन 8५२ यंद्रनु विभान याद छ. 'दसुत्तरजोयणसए अवाधाए सब्बोपरिल्ले तारारूवे चार चरई' અને ૧૧૦ એક સે દસ એજન ઉંચે ઉપરના તારા રૂપ વિમાન ચાલે છે.
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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