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________________ प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.११० देवशक्तिनिरूपणम् ९३९ इणठे समठे, एवं चत्तारि वि गमगा.' देवः खलु महर्दिकः यावन्महानुभावः पूर्वमेव बालमच्छित्वाऽभित्या प्रभुः दीर्षी कर्तुं वा-इस्त्रीकर्तुं वा, इस्वं वा दीर्घ कर्तु सामर्थ्यवान् किम् ? भगवानाह-नायमर्थः समर्थः । एवं चत्वारोऽपि गमाः' तथाहि-देवो महद्धिको यावन्महानुभागो बाह्यपुद्गलान् अपर्यादाय पूर्वमेव बालं छित्वा भित्वा प्रभु दीघी का इस्त्री कर्तु वाऽयमों न समर्थः । देवो महद्धिको बाह्यपुद्गलान् पर्यादाय पूर्वमेव वालमच्छित्साऽभित्वा प्रभुदी कर्तुं इस्वीकर्तुम् षणों वाला है पूर्वगृहीत शरीर को छेदन भेदन नहीं करके क्या उसे बडा करने के लिये या छोटा करने के लिये समर्थ हो सकता है? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'नो इणटे समहे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है 'एवं चत्तारि वि गमा' इसी तरह से शेष ३ गम भी जानना चाहिये-जैसे-महर्दिक आदि विशेषणों वाला कोई देव हे भदन्त ! वाद्य पुद्गलों को ग्रहण किये विना पूर्व गृहीत शरीर का छेदन अदन करके क्या उसे वडा करने के लिये और छोटा करने के लिये समर्थ हो सकता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'नो इणटूठे समढे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है हे भदन्त ! महद्धिक आदि विशेषणों वाला कोई देव बाह्य पुद्गलों को तो ग्रहण करे पर पूर्व गृहीत शरीर का छेदन भेदन नहीं करे तो क्या वह देव उसे वडा करने के लिये या छोटा करने के लिये समर्थ हो सकता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! 'णो इणढे नो सम?' यह अर्थ समर्थ नहीं है । हे भदन्त ! कोई ષણે વાળા છે. પૂર્વ ગ્રહણ કરેલ શરીરને છેદન ભેદન કર્યા વિના શું તેને મેટું કરવા માટે અથવા નાનું બનાવવા માટે સમર્થ થઈ શકે છે? આ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४१ छ -'णो इणदे समठे गौतम ! २॥ अथ समय नथी. 'एवं चत्तारि वि गमा' से प्रमाणे माहीना जो भी पY સમજી લેવા. જેમ મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષ વાળા કેઈ દેવ હે ભગવન ! બહારના પુગલેને ગ્રહણ કર્યા વિના પહેલાં ગ્રહણ કરેલ શરીરનું છેદન ભેદન કરીને શું તેને મોટું કરવા માટે અથવા નાનું બનાવવા માટે સમર્થ થઈ श छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ है-'णो इणठे समठे' 3 ગૌતમ! આ અર્થ સમર્થ નથી. હે ભગવન મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણ વાળા કેઈ દેવ બહારના પુદ્ગલેને ગ્રહણ કરે પણ પહેલા ગ્રહણ કરેલ શરીરનું છેદન ભેદન ન કરે તે શું તે દેવ તેને મોટું બનાવવા અથવા નાનું બનાqा समथ य श छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४९ छे 3-णो इणटूठे समटूठे' मा म समथ नथी. मगवन् । म विगेरे विशेष
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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