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________________ ८८८ जीवाभिगमसूत्रे इत्यादि क्षोदोदवत् 'रुयगवरभद रुयगवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा' रुचकवरभद्र - रुचकवरमहाभद्रौ द्वौ देवावत्र महर्द्धिकौ यावत्पल्योपमस्थितिको यथाक्रमं पूर्वार्धपरार्धाधिपती वसतः । 'रुयगवरीदे रुयगवरस्यगवर महावरा एत्थ दो देवा महडिया' रुचकोदकं समुद्रं रुचकवरी नाम द्वीपो वृत्तो वलयाकार संस्थानेन संस्थितः सर्वतः समन्तात् संपरिक्षिप्य तिष्ठति इत्यादि सर्व निरुप्य रुचकचरोदे समुद्रे रुचकवररुचकमहावरौ द्वौ देवाचत्र महर्द्धिको यात्पल्योपमस्थितिमन्तौ परिवसतः । 'रुयगवरावभासे दीवे-रुयगवरावभासभद्द - रुयगवरावभासमहाभद्दा एत्थ दो देवा महडिया' रुचकबरोदं समुद्रं रुचकवरा भासनायद्वीपो वृत्तो यावतु संपरिक्षिप्य तिष्ठहुए है यह द्वीप गोल तथा वलय के जैसे आकार वाला है इत्यादि सब aner क्षोदोदक द्वीप के जैसा ही जानना चाहिये 'रुयगवर भद रु गवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा' यहां पर रुचकवरभद्र और रुचकवरमहाभद्र नामके दो देव रहते हैं । ये महर्द्धिक आदि विशेषणों वाले हैं एवं यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले हैं । इन में एक पूर्वार्ध का अधिपति है और दूसरा अपराध का अधिपति है 'रुयगवरीदे रुयगवर रुगवर महावरा एत्थ दो देवा महड्डिया' रुचकवर समुद्र को चारों ओर से वेढे हुए रुचकवर नामका द्वीप है यह गोल है और वलय के जैसे आकार वाला है इत्यादिरूप से सब कथन करके इस रुचकवरोद् समुद्र में रुचकवर और रुचकवर महावर नामके दो देव रहते हैं । ये महर्द्धिक आदि विशेषणो वाले एवं यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले हैं । 'रुयगवरावभासे दीवे रुयगवरावभास भद्द रुयगवरावभास महाभद्दा एत्थ दो देवा महड्डिया' रुचकबरोद समुद्र को चारों ओर से વલયના જેવા છે. વિગેરે તમામ કથન ક્ષેાદાઇક દ્વીપના કથન પ્રમાણેજ છે. 'रुयगवरभद्द रुयगवरमहाभदा एत्थ दो देव।' मडीयां રૂચકવર ભદ્ર અને રૂચકવર મહાભદ્ર એ નામવાળા એ દેવા નિવાસ કરે છે. એ દેવા મહકિ વિગેરે વિશેષણો વાળા છે. એવ યાવત્ એક પત્યેાપમની સ્થિતિવળા છે. તેમાં એક પૂર્વના અધિપતિ છે, અને ખીજા અપરાધના અધિપતિ છે. 'रुयगवरोदे रुयगवर रुयगमहावरा एत्थ दो देवा महड्डिया' ३२४१२ समुद्रने ચારે ખાજુએથી ઘેરીને ચકવર એ નામના દ્વીપ આવેલ છે. એ દ્વીપ ગાળ છે. અને ગાળ વલયના આકાર જેવા તેના આકાર છે. વિગેરે પ્રકારથી તમામ કથન કરીને આ ચક્રવરેાદ સમુદ્રમાં રૂચકવર અને રૂચક મહાવર એ નામેાવાળા એ દેવા રહે છે. તે દેવા મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણો વાળા છે. એવં ચાવત मेड पोयमनी स्थितिवाजा छे, 'रुयगवरावभासे दीवे रुयगवरावभासभद्दयग 1
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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