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________________ जीवाभिगमने प्रदेशाः समुद्रस्यैव नहि स्पर्शमात्रात् द्वीपस्य लोकिकव्यवहारात् । हे भदन्त ! क्षीरवरद्वीपस्था जीवा मृताः सन्तः पुनस्तत्रैव क्षीरवरसमुद्रे वा ? एवं समुद्रस्था मृताः पुनः समुद्रे एवाऽन्यत्र वा द्वीपे जायन्ते ? हे गौतम ! "कर्मणो गति वैचित्र्यात्तत्राऽन्यत्राऽपि वा पुनः । आयान्त्येव न चाऽऽयान्ति मृताः केचन केचन ॥१॥" 'से केणटेणं भंते !' तत्केनार्थेन भदन्त ! क्षीरवरो द्वीपः० एवमुच्यते ? गौतम ! क्षीरवरद्वीपे तत्र तत्र देशे प्रदेशे 'वहूओ खुट्टा० वावीओ जाव सर सर पंतियाओ खीरोदग पडिहत्थाओ पासाईयाओ ४ वहव्यः क्षुद्राः क्षुल्लिका वाप्यः विलपंक्तयः सरः सरः पंक्तयः क्षीरोद परिपूर्णाः प्रासादिकाः दर्शनीयाः दीपों को छू रहे हैं वे समुद्र के ही कहे जावेंगे-दीप के नहीं ! हे भदन्त ! क्षीरवरद्वीप के जीव जब मरण करते हैं तो क्या वे वहीं पर उत्पन्न होते हैं ? या अन्यत्र उत्पन्न होते हैं ? हे गौतम ! ऐसा कोई नियम नहीं है कि वहां के मरे हुए जीव वहीं पर उत्पन्न हो अन्यत्र न हाँ उक्तंच 'कर्मणोगति वैचित्र्यात् तत्रान्यत्रापि, वा पुनः आयान्त्येव न चायान्ति मृताः केचनकेचन ॥१॥ 'से केणटेणं भंते !' हे भदन्त ! क्षीरवरद्वीप ऐसा इस द्वीप का नाम क्यों हुआ है ? 'गोयमा ! देसे २ बहओ खुड्डा० वावीओ जाव बिलपंतीयाओ खोंदोद्ग पडिहत्थाओ उप्पाय पव्वगा सव्व वइरामया अच्छा जाव पडिख्वा' हे गौतम! क्षीरवरद्वीप में जगह २ अनेक छोटी चडी वापिकाएं हैं यावत् विलपंक्तिया है इन में क्षीर के जैसा મરીને તેઓ શું ત્યાંજ ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા તે સિવાયના કેઈ બીજાજ સ્થાનમાં ઉત્પન્ન થાય છે? હે ગૌતમ! એ કેઈ નિયમ નથી કે ત્યાં મરેલા જીવે ત્યાંજ ઉત્પન્ન થાય બીજે ઉત્પન્ન થાય નહીં કહ્યું પણ છે કે कर्मणो गति वैचिच्यात् तत्रान्यत्रापि वा पुनः । आयान्त्येव न चायान्ति मृताः केचन केचन ॥ १ ॥ 'से केणठे गं भंते ! 3 मगवन् क्षी२५२ दी५ से प्रभानु मा दीपर्नु नाम शा रथी थ्ये छ ? 'गोयमा ! देसे देसे बहुओ खुड्डो० वावीओ जाव विलंपतियाओ खोदोदग पडिहत्याओ उप्पायपव्वगा सव्य वइरामया अच्छा जाव - पडिरूवा' हे गौतम ! क्षी२१२ १५मा स्थणे स्थणे मन नानी मोटी वा।
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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