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________________ ___८०३ प्रमेययातिका टोका प्र.३ उ.३ सू. १०१ पु०करोदसपुद्रनिरूपणम् केवइयं चक्कचालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं' तथैव समचक्रवालसंस्थानसंस्थितो-वरुणवरद्वीपः ? हे भदन्त ! वरुणवरद्वीपः कियच्चक्रवालविष्कम्भेण कियच्च परिक्षेपेण प्रज्ञप्तः ? समाधत्ते भगवान्-'गोयमा !' हे गौतम ! 'संखेजाई जोयणसयसहस्साई चकवालविक्खंभेणं-संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई परिक्खेवेणं' संख्येययोजनशतसहस्राणि चक्रवालविष्कम्भेण परिक्षेपेण च संख्येययोजनशतसहस्राण्येव प्रज्ञराः । 'पउमबरवेड्या वणसंड वण्णओ' पद्मवरवेदिका वनषण्डाभ्यां सर्वतः समन्तात् संपरिक्षिप्तः उभयोवर्णनमत्र । 'दारंतरं पएसा जीवा तहेव सव्वं चत्वारि विजयादि द्वाराणि पूर्वत आरभ्योत्तरान्तानि तेषां और वलयाकार के जैसे आकार वाला है 'तहेव समचकवाल संठितो' वरुणवरद्वीपं समचक्रवाल वाला है केवतियं समचक्कवाल वि० केवइयं परिक्खेवेर्ण' हे भदन्त ! इसका समचऋवाल चौडाई में कितना है ? और परिक्षेप. इसका कितना है ? 'गोयमा ! संखिज्जाई जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं संखिज्जाइं जोयणसयसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ते' इसका समचक्रवाल चौडाइ में संख्यात लाख योजन का है और परिक्षेप भी इसका संख्यात लाख योजन का है 'पउमवरवेदिया वणसंड वण्णओ दारंतरं पदेसा जीवा तहेव सव्वं' इसके चारों ओर पद्मभवरवेदिका और पद्मवरवेदिका के चारों ओर एक वनषण्ड है इनका वर्णन यहां पर पूर्वोक्त जैसा ही है यहां पर पूर्व की तरह हे भदन्त ! इस द्वीप के प्रदेश वरुणवरसमुद्र को छूते हैं और वरुणवरसमुद्र के प्रदेश इस द्वीप को छूते हैं तो वे प्रदेश किसके माने जावेंगे-तो इसके उत्तर में यही कहना चाहिये कि वे जो वरुणद्वीप के 'तहेव समचकवाल संठितो' १३७१२ द्वीप समयपास पाणी छ. 'केवतिय समचकवाल वि० केवइयं परिक्खेवेणं' हे लगवन् तेना समय पार पाडणाभा छ ? मन तना परिक्ष५ टी छ ? 'गोयमा ! संखिज्जाइं जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ते' तना સમચક્રવાલ વિધ્વંભ પહોળાઈમાં સંખ્યાત લાખ એજનને છે. અને પરિક્ષેપ પણ तना सच्यात म योजना छ. 'पउमवरवेइया वणसंड वण्णओ दारंतरपदेसा जीवा तहेव सव्वं तेनी या मा पन१२ a मने ५५५२ वानी न्यारे તરફ એક વનખંડ છે. તેનું વર્ણન પહેલાના વર્ણન પ્રમાણે અહીંયા સમજી લેવું. તે આ પ્રમાણે–હે ભગવન આ દ્વીપના પ્રદેશ વરૂણવર સમુદ્રને સ્પશે છે. અને વરૂણવર સમુદ્રને પ્રદેશ આ દ્વીપને સ્પર્શ કરે છે. તે તે પ્રદેશ કેના કહેવાશે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં એજ કહેવું જોઈએ કે વરૂણદ્વીપના જે
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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