SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 820
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७९८ जीवाभिगमसूत्रे 'गोयमा ! समचक्कवालसंठाणसंठिए नो विसमचक्कवालसंठाणसंठिए' हे गौतम ! विषमेण नो, किन्तु समेनैव चक्रवालसंस्थानेन संस्थितः । सम्प्रति विष्कम्भादि प्रतिपादनार्थमाह- ' पुक्खरोदेणं भंते! समुदे केवइयं चक्कवाल विक्खंभेणं केवयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते - गोयमा ! संखेज्जाइ जोयणसयसहस्सा इं चक्कवालविवखंभेणं संखेज्जाई' जोयणसयसहस्साइ' परिक्खेवेणं पन्नत्ते' पुष्करोदः खलु भदन्त ! समुद्रः कियञ्च्चक्रवाल विष्कम्भेण, कियत्परिक्षेपेण च प्रज्ञप्तः ? इति गौतमेन प्रश्ने कृते भगवानाह - गौतम ! संख्येयानि योजनशतसहस्राणि चक्रवालविष्कम्भेण संख्येयानि योजनशतसहस्राणि परिक्षेपेण - अर्थात संख्यात योजनशतसहस्राणि चक्रवालस्य विष्कम्भपरिक्षेपाभ्यामुभाभ्यामपि प्रज्ञप्तः । अयं समुद्रः पुष्करोद एकया पद्मवरवेदिकया अष्ट योजनोच्छ्रय जगत्युपरिभाविन्या एकेन वनपण्डेन च सर्वतः संपरिक्षिप्तः, अनयोर्वर्णनमत्र जम्बूद्वीप तवत्करणीयम् । 'पुक्खरोदस्स णं मंते । समुदस्स कइ दारा पन्नत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दाग पन्नत्ता' हे भदन्त ! पुष्करोद समुद्रस्य खलु द्वाराणि कति ? गौतम ! चत्वारि विजय वैजयन्तं - जयन्ताऽपराजितानि प्रज्ञप्तानि, 'तहेव क्षेप कितना है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! संखेल्लाई जोयणसयसहस्साईं चक्कवालविक्खंभेणं संखेज्जाई जोयणसयसहस्सा इं परिक्षेपेण' हे गौतम! इसका चक्रवाल विष्कम्भ संख्यात लाख योजनों का है और विष्कम्भ भी इसका संख्यात लाख योजनों का है 'पुरुखरोदस्स णं समुद्दस कति द्वारा पण्णत्ता' हे भदन्त ! इस पुष्करोद समुद्र के कितने द्वार कहे गये हैं ? 'गोयमा ! चत्तारि द्वारा पण्णत्ता' हे गौतम! इस पुष्करोद समुद्र के चार द्वार कहे गये हैं । 'तहेव सव्वं पुक्खरोद समुद्द पुरत्थिमपेरते वरुणवरदीव पुरत्थिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं पुक्खरोदस्स विजए नामं दारे पण्णत्ते' इस सम्बन्ध में कथन जैसा कि पहिले किया जा चुका है वैसा ही वह यहां पर छे ? या प्रश्नमा उत्तरभां अनुश्री छे है- 'गोयमा ! संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई चक्काल विक्खंभेण संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं परिक्खेवेणं' हे गौतम! તેના ચક્રવાલ વિષ્ણુભ સખ્યાત લાખ ચેાજનના છે. અને તેના વિષ્કલ પણ सौंच्यात साम योननानो छे. 'पुक्खरोदस्स णं समुदस्स कति द्वारा पण्णत्ता' डे भगवन् ! मा थुप्रो समुद्रना डेटा द्वारा ह्या छे ? 'गोयमा । चत्तारि दारा पण्णत्ता' हे गौतम! गुष्ठुरोह सभुद्रना यार द्वारा उडेवामां आवे छे. 'तव सव्वं पुक्खरोदसमुदं पुरत्थिमपेरते वरुणवर दीव पुरत्थिमद्धस्स पच्चत्थि - मेणं एत्थ पुक्खरोदस्स विजए नामं दारे पण्णत्ते' या विषय संमंधनु विशेष ઘન પહેલાં કહેવામાં આવી ગયેલ છે. એજ પ્રમાણેનુ તે અહીયાં પણ સમજી
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy