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________________ ७६८ जीवाभिगमसूत्र विष्कम्भेण ४ शिखरे विष्कम्भेण ५ अन्तगिरिपरिरयेण ६ वहिगिरि परिरयेण ७ मध्ये गिरिपरिरयेण ८ उपरि च गिरिपरिरयेण ९ कियत् इति प्रश्नः, भगघानाह-'गोयमा ! माणुसुत्तरेणं एब्बए' सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाई उड़े उच्चत्तेणं, चत्तारि तीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं, मूले दस बावीसे जोयणसए विक्खंभेणं, मज्झे दसतेवीसे जोयणसए विक्खंभेणं, उवरि चत्तारि चउचीसे जोयणसए विक्खंभेणं, अंतोगिरि परिरयेणं एगा जोयणकोडी वायालीसं च सयसहम्साई तीसं च सहस्साई दोण्णि य अउणापण्णे जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं, बाहिरगिरि परिरएणं एगा जोयणकोडी वायालीसं अन्दर की कितनी परिधि है कितनी बाहिर की परिधि है कितनी वीच में परिधि है और उपर कितनी परिधि है ? इसके उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं-'गोयमा ! माणुसुत्तरेणं पचते सत्तरस एकवीसाई जोयणसयाई उड्डूं उच्चत्तणं' हे गौतम ! मानुषोत्तर पर्वत १७२१ योजन पृथ्वी से ऊंचा है 'चत्तारि तीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं' ४३० योजन और १ कोस पृथ्वी में गहरा है। 'मूले दसवावीसे जोयणसते विक्खंभेणं मृल में १०२२ योजन चौडा है. 'मज्झे सततेवीसे जोयणसते विक्खंभेणं' बीच में, ७२३ योजन चौडा है 'उवरि चत्तारि चविसे जोयणसए विक्खमेणं' ऊपर में ४२४ योजन चौडा है 'अंतो गिरि परिरपणं एगा जोयणकोडी वायालीसंच सयसहस्साई। तीसं च सहस्साई दोणि य अउणा पण्णे जोयणसए किंचि विसेसाકેટલે પહેળે છે. મધ્ય ભાગમાં કેટલે પહેળે છે?-અને ઉપરના ભાગમાં કેટલે પહેળે છે? અંદર તેની પરિધિ કેટલી છે? બહાર કેટલી પરિધિ છે. વચમાં કેટલી પરિધિ છે, અને ઉપર કેટલી પરિધિ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री गौतमस्याभार ४ छ -'गोयमा ! माणुसुत्तरेण पव्वते सत्तरस एक वीसाई जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तण' हे गौतम | भानुषात्त२ पर्वत १७२१ सत्तरसे। मेवीस यापन पृथ्वीथी या छ. 'चत्तारि तीसे जोयणसए कोसं. च उव्वेहेणं' ४३०/ यारसा त्रीस यौन मने मे अस-16 भीननी म२ 8°i उतरे छ. 'मूलं दसवावीसे जोयणसए विक्खंभेण भूणमा १०२२ इससे मावीस यौन पहाणी छे. 'मज्झे सत्ततेवीसे जोयणसए विक्खंभेणं' qयमा ७२७/ सातसे तेवीस योन पहाणी छे. 'उवरि चत्तारि चउवीसे जोयणसए विक्खंभेणं' ५२नी मा ४२४/ यारसे यावीस यौन पहाणी छे. 'गिरिपरिरएणं एगा जोयण कोडी बायोलीसंच सयसहस्साई तीसंच सहस्साई दोण्णिय अउणावन्ने जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेंवेण' भीनमी मनी
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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