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________________ ६६२ जीवामिगमसूत्रे 'गोयमा ! लवणस्स णं समुदस्स उमओ पासिं पंचाणउइ २ जोयणसहस्सा ई गोतित्थं पन्नत्तं' हे गौतम ? लवणसमुद्रस्य खजु उभयपार्श्वयोः कूलयोः, जम्बूद्वीप वेदिकान्ताल्लवणसमुद्र वेदिकान्ताच्चारभ्येत्यर्थः, पंचनवतिं २ योजनसह - स्राणि यावद् गोतीर्थमुक्तम् । उक्तञ्च 'पंचाणउ सहस्से गोतित्थं उभयतो वि लवणग्स' । छाया - पञ्चनवति सहस्राणि गोतीर्थमुभयतोऽपि लवणस्येति । 'लवणस्स णं भंते समुदस्स के महालए गोतित्थविरहिए खेत्ते पन्नत्ते' हे भदन्त ! लवणसमुद्रस्य खलु कियन्महत् कियत्प्रमाणकं गोतीर्थविहीनं क्षेत्रमिति प्रश्नः ? भगवानाह - 'गोयमा ! लवणस्स णं समुदस्स दस जोयणसहस्साई कहते हैं - 'गोमा ! लवणस्स णं समुद्दस्स उभओ पासि पंचाणउति २ जोयणसहस्साइं गोतित्थं पण्णत्तं' हे गौतम ! लवणसमुद्र का जो गोतीर्थ है वह दोनों बाजू में जम्बूद्वीप की वेदिका के अन्त से लगाकर दोनों ओर ९५ - ९५ हजार योजन का है उक्तं च- पंचाणउइसहस्से गोतित्थं उभयतो वि लवणस्स' लवणसमुद्र का जो क्रम से नीचे नीचे का प्रवेश मार्ग है अर्थात् पानी का जो उतोर चडाव है - वह गोतीर्थ है ऐसा पहिले प्रकट कर दिया गया है 'लवणस्स णं भंते ! समुद्दस्स के महोलए गोतित्थ विरहिते खेत्ते पण्णत्ते' हे भदन्त ! लवणसमुद्र का कितना प्रदेश ऐसा है कि जहां पर गोतीर्थ नहीं है-अर्थात् सममात्रा में पानी है । पानी का उतार चडाव वहाँ पर नहीं है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! लवणस्स णं समुदस्स दसजोपण अनुश्री ४ छे - 'गोयमा ! लवणस्स णं समुदस्स उभओ पासिं पंचाणउति जोयण सहत्साई गोतित्यं पण्णत्तं' हे गौतम! सवाणु समुद्रनु ं ने गोतीर्थ छे, ते અને ખાજુથી જ બુદ્ધીપની વેકિાના અંતથી લઈને બ ંને તરફ ૫ પંચાણુ. स्थ यथालु हुन्नर योन्ननु छे, छु' पशु छे है - 'पंचाणसहस्से गोतित्थं उभ. यतो वि लवणस्स' लवण समुद्रनो भथी ? नीचे नीयेनेो प्रवेश भार्ग छे. અર્થાત્ પાણીના જે ઉતાર અને ચઢાવા છે. તેને ગાતી' કહે છે. આ પ્રમાણે थडेला हेवामां भावी ४ गयेस छे. 'लवणस्स णं ते! समुहस्स के महालए गोतित्थविरहिते खेत्ते पण्णत्ते' हे भगवन् सवाणुसमुद्रनो डेटा प्रदेश सेवा छे કે જ્યાં ગાતી આવેલ નથી. અર્થાત્ સમ માત્રાથી પાણી રહેલ છે, પાણીના ઉતાર ચઢાવ ત્યાં થતા નથી આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે'गोयमा ! लवणस्स णं समुदस्स दस जोयणसहस्साई गोतित्थविरहिते खेत्ते पण्णत्ते'
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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