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________________ प्रमैयद्योतिका टीका प्रे. उ.३ .८३ लंबणसमुद्रे जलवृद्धिहासनिरूपणम् ५३९ पल्योपमस्थितिकदेवताभिः परिगृहीताः। तेसि णं खुड्डागपातालाणं तओ. तिभागा पनत्ता-तं जहा हेडिल्ले तिभागे-मन्झिल्ले तिभागे-उवरिल्ले तिमागे' तेषां खलु क्षुद्रपातालानां त्रयस्त्रिमायाः प्रक्षसाः तद्यथा-अधनिभागो मध्यमत्रिभाग ऊर्ध्वत्रिभागश्च 'तेणं तिभाना-तिणि तेत्तीसे जोयगसए जोयणतिभागं च पाहल्लेणं पन्नते ते खलु त्रिभागाः प्रत्येकं त्रयस्त्रिंशदधिकानि त्रीणि योजनानां शतानि योजनविभागं च वाहल्येन प्रज्ञताः, 'तत्थ णं जे से हेढिल्ले तिभागे एत्थ णं वाउकाओ, मझिल्ले तिभागे वाउयाए आउयाए य, उवरिल्ले आउकाए' तत्र खलु यः सोऽस्त्रिभागोऽत्र खलु वायुकाय स्तिष्ठति, यश्च मध्यमविभागस्तस्मिन् वायुकायोऽप्कायश्चोभौ तिष्ठतः यश्वोपरितनविभागस्तत्राsहैं । 'पत्ते २ अद्धपलिओवमहिईचाहिं देवयाहिं परिगहिया' ये प्रत्येक क्षुद्र पातालकलश आधे पल्यापम की स्थिति वाले देवताओं से युक्त हैं 'तेसि णं खुड्डागपायालाणं लओ तिमागा पण्णत्ता' इन क्षुद्र , पातालकलशों के तीन विभाग कहे गये हैं । 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-'हेडिल्ले तिभागे, मज्झिल्ले तिभागे, उवरिल्ले तिमागे एक : नीचे का त्रिभाग, दूसरा मध्य का त्रिभाग, और तीसरा ऊपर का त्रिभाग 'ते गंतिभागा तिपिण तेतीसे जोयणसए जोयणा तिभागं च वाहल्लेणं पन्नत्ते' इस में से प्रत्येक विभाग तीन सौ तेतीस योजन १ एक योजन के तीन भाग में से एक भाग प्रमाण है 'तत्थणं जे से हेडिल्ले तिभागे एत्थणं बाउकाए संचिटइ' इन में से जो अधस्तन त्रिभाग है वहाँ पर वायुकायिक जीव रहता है 'मज्झिल्ले तिभागे वाउकाए य आउकाए य उवरिल्ले य आउकाए' मध्य के विभाग में वायुकायिक और अप्कायिक जीव रहता है तथा ऊपर के विभाग में ४थी मशाश्वत छ. 'पत्तय पत्तेय अद्धपलिओवमद्विइयाहिं परिग्गहिया' २५ '४२४ क्षुद्रपातsan अर्धा पक्ष्योपभनी स्थितिवाणा वाथी युक्त छ. 'तेसिं 'णं खुड्डागपायालाणं तओ तिभागा पण्णत्ता' से क्षुद्र पाता। शोना ay 'निमा 'छे 'तं जहा'२ । प्रभारी छ-'हेदिल्ले तिभागे, मझिल्ले तिभागे उवरिल्ले तिभागे' 2 नीयन निमारमान मध्य विमा भने श्रीन ५२न। मा 'तेणं तिभागा तिण्णि तिणि तेत्तीसे जोयणसए जोयणातिभागं च बाह ल्लेणं पण्णत्ते' तमाथी ४२४ निमाणुस तेत्रीस यान मे याना ! भागमाथी ४ मा प्रमाण छ. तित्थ णं जे से हेठिल्ले तिभागे एत्थणं वाउकाए संचिदुई तेमाथी नीयमा त्यो वायुयि: ला रहे छ. 'मझिल्ले तिमागे वाउयाएय आउकाए य उवरिल्ले आउया' नाभा वायु
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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