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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ स.७९ पुष्करिण्याः मध्यगतप्रासादावतंसकः ४९५ प्रश्ने भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! जंबूएणं सुदंसणाए-जंबूदीवाहिवईअणाढिते णामं देवे महड्रिए जाव पलिओवमठिईए परिवसइ' 'जम्बा, 'सुदर्शनायां-जम्बूद्वीपाधिपतिः सन् अनादृतो नामदेवो महद्धिको यावत्पल्योपमस्थितिमान् तत्र सुदर्शनायां प्रतिवसति । 'से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सी णं जाव' वसन् सन् सोऽनादृतदेवः तत्र चतुर्णा सामानिकसहस्राणां यावच्चत. स्राग्रमहिषी सप्तानीकसप्तानीकाधिपति पोडशात्मरक्षकदेवसहसाणां, तदन्येषाञ्च बहुवानव्यन्तरदेवानां देवीनाम् आधिपत्यादिकं कुर्वाणो विहरति । 'जबुद्दीवस्सजंबूए सुदंसणाए अणाढियाएय रायहाणीए जाव विहरंति'-जम्बू सुदर्शनाया अनादृतराजधान्याः स्वामित्वं-भर्तृ त्वाऽऽधिपत्यपौरपत्यादिकं कुर्वन् पालयन् तत्र बहवो वानव्यन्तरदेव्यः शेरते निषीदन्ति यावद विहरन्ति । 'कहिणं भंते !! कुत्र खलु भदन्त ! अनादृताऽनाहतस्य राजधानीति प्रश्न: 'अणडियस्स जाव में प्रभु कहते हैं-'जंबूएणं सुदंसणाए जंबूदीवाहिवई अणाढिते णाम देवे महिड्डिए जाय पलिओवमठिईए परिवसई' हे गौतम! जंबूसुदर्शना पर जम्बूद्वीप का अधिपति जो महद्धिक आदि विशेषणों वाला अनादृत नामका देव है वह रहता है इसकी स्थिति एक पल्योपम की है 'से णं तत्थ चउण्हं सामाणिय साहस्सीणं जाव' वह वहां चार हजार सामानिक देवों का, चार अग्रमहिषियों का, सात अनीकाधिपतियाँ का, १६ हजार आत्मरक्षक देवों का एवं और भी अनेक वानव्यन्तर देवों का एवं देवियों का 'जंबुद्दीवस्स जंबुए सुदंसणाए अणाढियाएय रायहाणीए जाव विहरंति' जंबूद्वीप का, जम्बुसुदर्शना का और अनाहत रोजधानी का आधिपत्य करता हुआ सुख पूर्व रहता है 'कहिणं भंते ! अणाढियस्स जाव समत्ता वतव्वया रायहाणीए महिड्डिए' हे है-'जबूएणं सुदंसणाए जंबूदीवाहिवई अणाढिते णामं देवे महडूढिए जाव पलिओवमठिईए परिवसई' गौतम । भूसुशन५२ दीपना अधिपतिर મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણોવાળા અનાદત નામના દેવ છે. તે નિવાસ કરે છે. तेनी स्थिति में पध्यापभनी छ. 'से णं तत्थ चउण्हं सामाणिय साहस्सीणं जाव' त त्यो या२ १२ सामानि वार्नु यार सयभडिषयानु सात અનીકાધિપતિનું ૧૬ સોળ હજાર આત્મરક્ષક દેવનું અને બીજા પણ અનેક पानव्यन्त२ हेवानु मन हेवियानु तथा 'जंबुदीवस्स जंबुए सुदंसणाए अणाढियाएय रायहाणीए जाव विहरंति' सम्पूदीनुअम्मूसुशिनानुमने मनाता यानीनु भाषपातपा ४२ता था सुमपूर्व त्या निवास ४२ छे. 'कहि ण भंते ! अणाढियस्स जाव समत्ता वत्तव्वया रायहाणीए महइढिए' उभगवन् ! मनातहेवनी सनाtતા રાજધાની કયાં આવેલ છે ? હે ગૌતમ ! વિજયા રાજધાનીના કથન
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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