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________________ ४९६ जीवाभिगमसूत्र सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता' जंबू खलु सुदर्शनाऽन्येवहुभिस्तिलकवृक्षैलकुटवृक्ष छत्रोपगाशिपादि यावत्-राजवृक्षः हिंगुवृक्षांवत्सर्वदिक्षु सर्वत्र स्थाने संपरि क्षिप्ता राजते ते च तिलकादयो नन्दिवृक्षाः सर्वतुकुसुमफलभारानमितशाखा प्रशाखावन्तो यावत्प्रतिरूपाः एतेऽन्यामि बवीमिः पद्मलता यावत् श्यामलताभि नित्यं कुमुमित-सतवकित-गुच्छिताभिः पत्र-पुष्प-फलभारावनताभिर्यावत् प्रति रूपाभिर्मण्डनमण्डिता राजन्ते । 'जंबूए णं सुदंसणाए उवरि वहवे अट्ठ अट्ठमंगकगा पन्नत्ता' सुदर्शना जंव्या उपरि वहन्यष्टावष्टौ मङ्गलकानि प्रज्ञप्तानि 'नं जहा' तद्यथा-'सोत्थिय-सिरिवच्छ०' स्वस्तिक-श्रीवत्सायाः । तदुपरि-कृष्ण नील पीतलोहितशुक्लचामरध्वजाः छनातिच्छत्राणि पताका तिपताकानि प्रज्ञप्तानि । यह जंबूसुदर्शना अन्य अनेक तिलक वृक्षों से, यावत् राज वृक्षोंखिन्नी के वृक्षों से-समस्त दिशाओं में-चारों ओर से-घिरा हुआ है । ये तिलकादि नंदिवृक्ष सव ऋतुओं में कुसुम और फलों के भार से जिनकी शाखा एवं प्रशाखाएं झुकी रहती हैं ऐसे हैं । यावत् प्रतिरूप हैं । तथा अन्य और भी अनेक पालता यावत् श्यामलताओं से जो कि सर्वदा कुसुमित, स्तबंकित, शुच्छित, बनी रहती हैं एवं जो पुष्प और फलों के भार से झुकी रहती है यावत् जो प्रतिरूपान्त तक के समस्त विशेषणों से युक्त हैं ये तिलकादिक नन्दिवृक्ष सुशोभित हैं। 'जंबूएणं सुदंसगाए उवरि यहवे अट्ठ २ मंगलगो पन्नत्ता' जम्बूसुदर्शना के ऊपर अनेक आठ २ मंगलक द्रव्य हैं 'तं जहा' वे मंगलक द्रव्य ये हैं 'सोत्थिय, सिरिवच्छ' स्वस्तिक श्रीवत्स आदि इनके ऊपर कृष्ण, नील, पीत, लोहित, शुल्लवर्ण की चामर ध्वजाएं हैं। येहिंगुरुक्खेहिं जाव सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता' या सुशिना मी मने તિલકવૃક્ષેથી યાવત્ રાજવૃક્ષે–રાયણેથી સઘળી દિશાઓમાં ચારે તરફથી ઘેરાયેલ છે. આ તિલક વિગેરે નંદિક્ષે બધી જ ઋતુઓમાં કુસુમ અને ફળના ભારથી જેની શાખાઓ અને પ્રશાખાઓ નમી ગયેલી છે એવા છે. થાવત્ પ્રતિરૂપ છે તથા બીજી અનેક પહાલતા યાવત્ શ્યામલતાઓથી કે જે. સદા કુસુમિત સ્તબકિત, ગુચ્છિત, બનેલા રહે છે. તેમજ પુષ્પ અને ફળોના ભારથી નમેલ રહે છે. યાવત એ પ્રતિરૂપ સુધીના સઘળા વિશેષણોથી યુક્ત छ. 241 तिस विगेरे नहीवृक्ष सुशामित छ. 'जबूएणं सुदसणाए उवरि बहवे अट्ठट्ठ मंगलगा पन्नत्ता' मुसुशिनानी ५२ अने४ मा २मा मतद्रव्यो छ. 'तं जहा' ये मनसाव्य मा प्रभार छ-'सोत्थिय सिरिवच्छ' स्वात શ્રીવત્સ વિગેરે. તેની ઉપર કૃષ્ણ, નીલ, પીત, લાલ અને સફેતરંગની ચામર,
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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