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________________ जीवाभिगमसूत्र फलानां भारेण नमितशाखा, उक्तञ्च-'मूला वइरमया से कंदो खंधो य रिटवेरु. लियो । सोवण्णिय साहप्पसाह तहजायरूवाय ॥१॥ विडिमारययवेरुलियपत्तवणिज्जपत्तविटाय । पल्लवमग्गपवाला जंबूणरयया तीसे ।२।। मूलानि वज्रमयानि स कन्दः स्कन्धश्च रिष्ट वैडूर्यकः । सौवर्णिक शाखाप्रशाखा तथा जातरूपाश्च ॥१॥ विडिमारजत वैडूर्यपत्र तपनीय पत्र वृन्तानि च । पल्लवाग्रप्रवालाः जाम्बूनदरजता स्तस्याः ॥२॥इति॥छाया।। 'सच्छाया' सती-समीचीना छाया यस्याः सा सच्छाया, 'सप्पभा'-प्रभाया-कान्त्या सह वर्तमाना सप्रभा, 'सउज्जोया-अहियं मणोणिव्वुइ करा' उद्योतेन सहिता-अधिकं मनसो निर्वृतिकराच प्रासादिका दर्शनीयाऽभिरूपा-प्रतिरूपा चाऽऽसीत् ॥९०७७॥ फलों के भार से सदा झुकी रहती है 'सच्छाया, सप्पभा, सस्सिरीया, - सउज्जोया, आहेयं मणो निव्वुइकरा, पासाइया, दरिसणिज्जा, अभिख्वा पडिरूवा' इसकी छाया वडी सुन्दर है प्रभा भी इसकी बडी सुहावनी है अतः देखने में यह वडा ही मनोरमता युक्त लगता है इससे ऐसा उद्योत निकलता है कि जैसा मणियों और रत्नों का उद्योत निकलता है इस प्रकार के उद्योत निकलने का कारण इसका मणि रत्नादि भय होना है यह अधिक से अधिक रूप में मन को शान्ति कर देता है यह प्रासादीय है दर्शनीय है अभिरूप है और प्रतिरूप है इन पदों का अर्थ-पीछे लिखा जा चुका हैइस जम्बू वृक्ष के वर्णन में इसी प्रकार की ये दो गाथाएं हैं मूला बहरमया से कंदो खंधो य रिवेरुलियो। सोवणिय साहप्पसाह तह जायख्वा य ॥१॥ शामास पुषी मने गाना माथी सहा नमेसी २९ छे. 'स्वच्छा सप्पभा, सस्सिरीया सउन्जोया आहेयं सणोणिव्वुइकरा' पासाइया, दरिसणिज्जा. अभिरूवा नाव पडिरूवा' तेनी छाया धणी सुंदर छे. तेनी आमा पy jी सोडा. મણી છે. તેથી જોવામાં તે ઘણીજ સોહામણી લાગે છે. તેથી તેને એ ઉદ્યોત નીકળે છે કે જે મણિ અને રત્નને ઉદ્યોત નીકળે છે આ પ્રમાણેને ઉદ્યોત નીકળવાનું કારણ તેનું મણિરત્નમય પણું છે. તે વધારેમાં વધારે મનને શાંતી આપે છે. તે પ્રાસાદીય છે, દર્શનીય છે અભિરૂપ છે, અને પ્રતિરૂપ છે. આ પદેને અર્થ પહેલાં કહેવામાં આવી ગયેલ છે. આ જંબુવૃક્ષના વર્ણનમાં 7 मा२नी मा मे गाथामा छ 'मृला वइरमया से कंदो खंदो य रिटु वेरुलियो । __ सोवण्णिय साहप्पसाह तहजाय रूवाय ॥ १ ॥
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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