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________________ - प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.७७ जम्वूपीठस्वरूपनिरूपणम् ४६३ -तापरिसमाप्तिः यावच्च तत्र बहवो वानव्यंन्तरदेवा देव्यश्चाऽऽसते-शेरते यावद्वि हरन्ति । 'तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स' तस्य खलु बहुसमरमणीय *भूमिभागस्य-'बहुमेझदेसभाए' वहुमध्यदेशभागे 'एत्थणं एगा महं मणिपेढिया पन्नत्ता अत्रोद्देशे एका महती मणिपीठिकाऽऽस्ते 'अट्ठजोयणाई आयामविक्खंभेणं' आयामविष्कम्भा या मष्टौ योजनानि 'चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं' पृथुत्वेन " चत्वारि योजनानि 'सव्वमणिमई अच्छा संण्हा जाव पडिरूवा' सर्वात्मना मणिमती -'अच्छश्लक्ष्णा यावत्प्रतिरूपा-इति। 'तीसे-णं मणिपेढियाए उवरि-'तन्मणि पीठि- कोपरि 'एत्य णं महं जंबू-सुदंसणापन्नत्ता' अत्र खलु मणिपीठिकोपरि बहुमध्य - देशभागे एका महती जम्बूसुदर्शना प्रज्ञप्ता 'अट्ठजोयणाई उड़े उच्चत्तेणं' सा जम्बू - सुदर्शनाऽष्टौ योजनानि ऊर्ध्वम् उच्चत्वेन 'अद्धजोय णं उव्वेहेणं' अर्धयोजन--- 'यहां अनेक वानव्यन्तर देव और देवियां उठती वैठती रहती हैं शयन -- करती हैं और आनन्द पूर्वक रहती हैं 'तस्तणं वहुसमरमणिज्जस्स --- भूमिभागस्स वहुमज्झदेसभाए' इस वहुप्सम रमणीय भूमिभाग के - ठीक बीच में 'एगा महं मणिपेढिया पन्नत्ता' एक विशाल मणिपीठिका - है यह मणिपीठिका - 'अट्ठजोयणोई आयामविक्खंभेणं' लम्बाई चौडाई " में आठ योजन की है 'चत्तारि जोयणाई वाहल्लेणं' और मोटाई - में चार योजन की है 'सव्व मणिमई अच्छा जाव पडिरूवा' -यह मणिपीठिका सर्वात्मना मणिमयी है स्वच्छ है यावत् प्रतिरूप हैं 'तीसेणं मणिपेढियाए उवरि एत्थणं महं जंबू सुदंसणा पन्नत्ता' उस । मणिपीठिका के ऊपर एक विशाल जम्बूसुदर्शना है अर्थातू जम्बू का · वृक्ष है 'अट्ठजोयणाई उडु उच्चत्तणं अद्धजोयणं उव्वेहेणं' यह आठ ભિત છે. વિગેરે પ્રકારથી વિજયરાજધાનીના વર્ણન પ્રમાણે આનું વર્ણન કરી લેવું યાવત્ અહીયાં વનવ્યન્તરદેવ અને દેવિયે બેસે છે. રહે છે. શયન કરે . छ.. मन मान पूर्व ४ २२ छ. 'तस्स णं वहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहु देसभाए' मा मसभरभणीय भूभिमानी ११२ क्यमा 'एगा महं मणि• रेडिया पन्नता से विण मणिपी. छ. २मणिपी8t 'अट्र जोयणाई आयामविक्खंभेणं' नी मा. पहाण म18 याननी छे. 'चत्तारि जोयणाई • पाहल्लेणं, तनी 130 या२ योनी छे. 'सवमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा' આ મણિપીઠિકા સર્વાત્મના મણિમયી છે. સ્વચ્છ છે. યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. 'तीसेणं मणिपेढियाए उवरि एत्थणं महं जंणूसुदंसणा पन्नत्ता' से मशुपाहिनी 6५२ मे विशाल भुसुशिना 2. अर्थात् भुवृक्ष छ. 'अट्र जोयणाई उढं · उच्चत्तेणं अद्ध जोयणं उव्वेहेणं' से मा8 योशननु यु छ तेनी ४ अर्धा
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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