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________________ ४६२ जीवाभिगमयो । रूपाः। तत्तत्तोरणानामुपरि वहनि छत्रानिच्छत्राणि पताकातिपनाकानि घण्टा युगलानि चामरयुग्मानि उत्पलहस्तका यावत् गतसहम्रपत्रहस्तकाः अच्छायावत्प्रतिरूपाः एतदभिप्रायेणवाह-'तं चेच जाव तोरणा जाव छत्ताइछत्ता' तदेव यावत् तोरणानि-यावच्छनातिन्छत्राणि इति । 'तम्स णं जंपेढस्स उपतस्य जंबूपीठस्य खलूपरि-'बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नने' बहुसमरमणीयों भूमिभागः प्रस्तुतः 'से जहाणामए आलिंग पुवखरेड वा जाव मणि' म यथानामकः आलिंगपुष्करमिति वा-यावन्नानाविधपञ्चवणे स्तुणमणिभियोपशोभित इत्यादि भूमिभागवर्णनं विजया राजधानीवत् । यावन्मणीनां स्पर्णवक्तव्यवस्त्र चांदी के हैं दण्ड इनके वज्र के है कमलों की जैसी इनकी निर्मल गंध है ये आकाश और स्फटिक मणि के जैसी स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं । इन तोरणों के ऊपर अनेक तरके अपर छत्र है तरके ऊपर अनेक पताकाएं हैं। घंटायुगल हैं। चामर युग्म हैं उत्पलों के गुच्छे हैं यावत् शतपत्र वाले कमलों के गुच्छे हैं ये सब अच्छ यावत् प्रतिरूप हैं। इसी बात को समझोने लिये 'तं चेव जाव तोरणा जाव छत्तातिछत्ता' सत्रकार ने ऐसा सूत्रपाठ कहा है 'तस्सणं जंबूपेढस्स उणि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' इस जंबूपीठ के अपर पहुसम रमणीय भूमिभाग है इस भूमिभाग के वर्णन सम्बन्ध में जैसा पहिले 'से जहा णामए आलिङ्ग पुक्खरेइवा जाव मणि' यह पाठ कहा गया है वैसा ही वह यहां पर भी कह लेना चाहिये यह भूमिभाग यावत् नाना प्रकार के पांच वर्णों वाले तृणों से एवं मणि से सुशोभित है इत्यादि रूप से विजय राजधानी की तरह इस का वर्णन है यावत् સફેત રંગના ચામર ધજાઓ છે. તેના પટ્ટ વર ચાંદીના છે. તેના દંડાએ વજના છે. તેની ગંધ કમળના જેવી નિર્મળ છે. તે આકાશ અને સ્ફટિક મણિના જેવા સ્વચ્છ છે, યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. આ તેરણોની ઉપર અનેક છત્રેની ઉપર છત્ર છે. છત્રની ઉપર અનેક પતાકાઓ છે. ઘંટાયુગલો છે. ચામર યુ છે. ઉત્પલેના ગુચ્છાઓ છે. યાવત્ શતપત્રવાળા કમળના ગુચ્છાઓ છે. એ मा भ७ यापत् प्रति३५ छ, मेरी पातने समजा भाटे 'तं चेव जाव तोरणा जाव छत्तात्तिछत्ता' सूत्रधारे 20 प्रमाणेना सूत्रपा डेल छे. 'तस्सणं जंबूपेढस्स उप्पिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' मा दीपनी ઉપર બહુસમરમણીય ભૂમિ ભાગ છે, આ ભૂમિ ભાગના વર્ણનના समयमा पडदा से जेहाणामए आलिंगपुक्खरेइवा जाव मणि' मा પાઠ કહેલ છે. એ જ પ્રમાણે અહીંયા પણ કહી લેવું જોઈએ. આ ભૂમિ ભાગ યાવત્ અનેક પ્રકારના પાંચ વર્ણોવાળા તૃણોથી અને મણિયેથી સુશે.
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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