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________________ ४३० ___ जीवाभिगमसूत्र वक्तव्यतापरिसमाप्तिः। 'तस्सणं बहुसमरमणिज्जस्स' कर्णिकोपरि विद्यमानस्य तस्य खलु बहुसमरमणीयस्य 'भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए भूमिभागस्य वहुमज्झदेसमाए बहुमध्यदेशभागे भूमिभागस्य 'एत्थ गं' अत्र स्थाने खलु 'एगे महं भवणे पन्नत्ते' महद्भवनमेकं प्रज्ञप्तम् । तद्भवनस्वरूपं दर्शयति'कोसं आयामेणं अद्धकोसं विखंभेणं' क्रोशमायामेन-क्रोशाध विष्कम्भेण 'देवणं कोसं उद्धं उच्चत्तेणं' देशोनं क्रोशमूर्ध्वमुच्चैस्त्वेन 'अणेगखंभसतसंनिविटं जाव वण्णओ' तद्भवनम ने कशतस्तम्भैरुपेतम् अभ्युद्गत सुकृतवनवेदिकं तोरण रचितशालमंजिकाकं मुश्लिष्टविशिष्टलष्टसंस्थितप्रशस्तवनविमलस्तम्भं नानामणिकनकरत्नवन्नोज्ज्वल बहुल बहुसमसुविभक्तचित्ररमणीयकुट्टिमतलम् ईहामृगपभतुरगनरम करविहग व्यालकिन्नररुरुसरभचमरकुंजरवनलता पद्मलता भक्तिचित्रम् स्तम्भोगतवज्रवेदिकापरिगताभिरामम् विद्याधरयमलयुगलयन्त्रसमासितक ही यहां ग्रहण करना चाहिये 'तस्स णं बहुसमरमणिजस्स, भूमिभागस्स वहुमज्झदेसभाए' बहुसमरमणीय भूमिभाग के बहुदेशभाग में 'एत्थ णं एगं महं भवणे पन्नत्ते' एक विशाल भवन है। यह भवन 'कोसं आयामेणं अद्धकोसं विखंभेणं' लम्बाई में एक कोस का है और चौडाई में आधे कोश का है 'देसूर्ण कोसं उर्दू उच्चत्तेणं' इसकी ऊंचाई कुछ कम एक कोस की है । 'अणेग खंभसयसंनिविर्ट' सैकडों खंभों से यह युक्त हैं 'जाव वण्णओ' इस भवन के सम्बन्ध में वर्णन 'अभ्युद्गतसुकृनवनवेदिकं, तोरणरचितशालभंजिकार्क, सुश्लिष्टविशिष्टलष्टसस्थितप्रशस्तवनविमलस्तम्भ, नानामणिकनक रत्नवज्रोज्वलयहुलवहुसमसुविभक्तचित्ररमणीयकुहिमतलम् , ईहामृगऋषभतुरगनरमकरविहगव्यालकिन्नररुरुसरभचमरकुंजरवनलतापद्मलताभक्तिचित्रम्' इत्यादि पदों से लेकर 'दर्शनीयम् , अभिरूपम् , प्रतिसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्मदेसभाए' सभरभएणीय भूमिलाना मई मध्य देश भागमा 'एत्थणं एग महं भवणे पण्णत्ते' ये विशाण लवन छे. मा लवननी 'कोसं आयामेणं अद्धकोसं यिखंभेण' मा असनी छ. अने पण मर्धा सनी छे. 'देसूर्ण कोस उड्ढे उच्चत्तण तेनी या Us माछी मे सनी छे. 'अणेगखंभसयसंनिविठ्ठ' से स्थ साथी से युद्धत छे. 'जार घण्णओ' मालवन समाधी वर्णन 'अभ्युद्गतं सुकृतवज्रवेदिकं, तोरणरचितशालभंजिकाकं शुश्लिष्टविशिष्टलष्टसंस्थित प्रशस्तवनविमलस्तम्भ, नानामणिकनकरत्नवनोबलबहुलबहुसमसुविभक्तचित्ररमणीयकुट्टिमतवम् , ईहामूग ऋषभतु. रंग नर मकर विग व्यालकिन्नर रूरू सरभ चमर कुंजर वनलता पद्मलता
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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