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________________ ३५० - जीवामिगमसूत्र ___टीका-'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ जंबुद्दीवे दीवे' तत्केनार्थेन भदन्त एवमुच्यते जम्बुद्वीपो द्वीपः एतस्य जम्बुद्वीप इति नामकरणे को हेतुः इति प्रश्नः ? भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ? 'जंबुद्दीवे दीवे' जंबूद्वीपोद्वीपः 'मंदरस्स पव्ययस्स उत्तरेणं' मन्दरपर्वस्योत्तरस्यां दिशि-'नीलवंतस्स दाहिणेणं' नीलवतो वर्षधरस्य दक्षिणस्याम्, 'मालवंतस्स वक्खारपव्ययस्स पच्चत्थिमेणं' माल्यवतो वक्ष स्कारगिरेः पश्चिमायाम् 'गंधमायणस्स वक्खारपव्ययस्स पुरस्थिमेणं' गन्धमादन वक्षस्कारगिरेः पूर्वस्याम् 'एत्थ णं उत्तरकुरानाम कुरा पन्नत्ता' अत्र स्थाने खलु उत्तरकुरवो नाम कुरवः क्षेत्रविशेपाः प्रज्ञप्ताः प्रथिताः। 'पाडीणपडीणायता-प्राचीन 'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चा' इत्यादि । टीकार्थ-'से केटेणं भंते ! एवं वुच्चई जंघुद्दीवे दीवे' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि जम्बूदीप नामका एक दीप है ? अर्थात् जम्बूदीप का जम्बूदीप ऐसे नाम होने का क्या कारण है? उत्तर में भगवान् कहते हैं-'गोयमा !' हे गौतम ! 'जंधुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्त उत्तरेन' सुनो-जंबूदीप में एक सुमेरुपर्वत है इस की उत्तर दिशा में 'नीलवंतस्स दाहिणणं' नील नामका एक वर्षधर पर्वत है इस वर्षधर पर्वत की दक्षिण दिशा में 'मालवंतस्स वक्खार पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं' एक माल्यवान नामका वक्षस्कार पर्वत है इस पर्वत की पश्चिम दिशा में 'गंधमायणवक्खारपव्वयस्स पुरस्थिमेणं' गन्धमादन नामका एक वक्षस्कार पर्वत है इस पर्वत की पूर्व दिशा में 'एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता' उत्तर कुरु नामका एक क्षेत्र विशेष है “पाडीणपडीणायता' यह पूर्व से पश्चिम तक 'से तेणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ( त्या टीप:-'से तेणटेणं भंते ! एव वुच्चइ जंबुद्दीवे दीवे' भगवन् मा५ से શા કારણથી કહે છે કે જંબુદ્વિપ નામને એક દ્વીપ છે? અર્થાત્ જંબુદ્વીપનું [ જંબુદ્વીપ એ પ્રમાણેનું નામ શા કારણથી થયેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री ५ छ - 'गोयमा! 3 गौतम ! जंबुद्दीवेणं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं' दीपमा ४ सुभे३ पति छ. तनी त२ हिशमां नीलवंतस्स areળ” નીલવંત નામને એક વર્ષધર પર્વત છે. એ વર્ષધર પર્વતની दक्षिण दिशामा 'मालवंतस्स वक्खारपव्ययस्स पञ्चत्थिमेणं' ४ भास्यवान नामना पक्षा२ पति छ. पतनी पश्चिम दिशाम 'गंधमायणवक्खारपव्वयस्स पुरस्थिमेणं' मधमान नाभनो मे १२३४२ पर्वत छ, मे पतनी पूर्व EिHi- 'एत्थणं उत्तरकुरा. नाम कुरा पन्नत्ता' उत्त२२। नाभनु मे क्षेत्र विशेष.
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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