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________________ लीवामिगमसूत्रे वहवे आभिजोगिया देवादेवीओ य कलसहत्यगया जाय धृकडुच्छुय हत्थगया' विजयदेवं यान्तमनुगच्छन्ति बहवो ऽन्येऽपि वानव्यन्तरदेवा देव्यथ कलश-भृङ्गारादर्शस्थाल-पात्री-सुप्रतिष्ठक-वातकरक-चित्रकण्ठक-पुष्पचंगेरी यावल्लोमइस्तचङ्गेरी - पुप्पपटलक-लोमहस्तपटलक - सिंहासन-छत्र-चामर - तैलमुद्गकयावदञ्जनसमुद्क-धूप कडुच्छुकहस्ताः 'विजयं देवं पिट्टतो पिट्टतो अनु गच्छेति' विजयदेवानुसरणक्रयेण पृष्ठनोऽनुगच्छन्ति, 'तएणं से विजए देवे चाहिं सामाणियसहस्सीहि जाव' ततश्च विजयो देवः चतुः सामानिकसहनेः यावत्-चतसृभिः सपरिवाराभिरग्रमहिपीभिः सशानीकैरनीकाधिपैश्च पोडशात्मरक्षकसहस्रैः परिवृत्त:-'अण्णेहि य वहूहिं वाणमंतरेहि देवेहिय देवीहिय सद्धि अन्यैश्च कतिपयै निव्यन्तरदेवैश्च देवीभिश्च सार्धम्, 'संपरिबुडे' सम्परिवृत्तः, 'सन्चडीए सव्वजुइए जाव जिग्घोसनादियरवेणं' सर्व ऋद्धया सर्वद्युत्या यावत्-सर्ववलेन सर्वसमुदयेन सर्वविभूत्या सर्वसम्भ्रमेण सर्वपुष्पगन्धमाल्यालङ्का-रेण सत्रुटित शब्दनिनादेन महत्या या महत्या युत्या महता बलेन महता ले जा रही है 'तएणं तत्स विजयस्ल देवस्स अभियोगिया देवा "देवीओ य कलसहत्थगया जाय धूपकडुच्छहत्थगया' तथा और भी जो अभियोगिक देव थे एवं देवियां थीं वे सब हाथों में कलशों को यावत् धूपकडच्छकों को लेकर 'विजयं देवं पिट्टओपिट्ठओ अणुगच्छंति' विजयदेव के पीछे चल रहे थे 'तएणं से विजए देवे चउहि सामाणियसाहस्लीहिं जाव अण्णेहिं य बहहिं वाणनंतरेहिं देवेहि देवीहि सद्धिं संपरिबुडे सधडीए सव्वजुईए जाब णिग्घोसणाइयरवेणं जेणेव सिद्धाययणे तेणेव उवागच्छह इस प्रकार वह विजयदेव चार हजार सामानिक देवों से यावत् और भी अनेक वानव्यन्तर देवों से एवं देवियों से घिरा हुआ समस्त ऋद्धि और शुति से युक्त हुआ वाजों की गडगडाAS Mय छ. 'तएणं तस्स विजयस्स देवस्स आभियोगिया देवा देवीओय कलसहत्थगया जाव धूवकडुच्छहत्थगया' तथा milan प रे मालियो४ि हे। . मन हेवियो ती ते वा सायामा ४६ यावत् ५५ ४२ होने वन 'विजय देवं पिदुओ पिटुओ अणुगच्छंति' वियवनी पा७॥ पान्यासताउता 'तरणं से विजए देवे चरहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव अण्णेहिंय बहूहि वाणमंतरेहिं देवेहि देवीहिं सद्धिं संपडिबुडे सव्वड्ढीए सव्वज्जुइए जाव णिग्घोसणाइयरवेणं. जेणेब सिद्धाययणे तेणेव उवागच्छई' मारीते ते वियव यार तर સામાનિક દેવેની યાવત્ બીજા પણ અનેક વાવ્યન્તર દેથી અને દેવિયેથી - ઘેરાઈને સઘળા પ્રકારની છદ્ધિ અને ઘુતિથી યુક્ત બનીને વાજાઓના ગડગડાટની
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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