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________________ जीवामिर्मस्टे सुकुमारयाचेत्यर्थः 'दव्याए सुरभीए' दिव्यया मुरभितया 'गंधकासाईए' सुरभिगन्धकापायिक्या-सुरभिगन्धकपाय द्रव्यपरिकर्मितया लघुशाटिकया, 'गाताईलूहेंति' गात्राणि-शरीराणि रूक्षयति, 'गाताई लूहेत्ता' गात्राणि रूक्षयित्वा' 'सर- सेण गोसीसचंदणेण गाताई अशुलिंपति' सरसेनाऽतिशयितगन्धयुक्तेन गोशीर्ष'चन्दनेन शरीराणि अनुलिम्पति, 'सरसेन गोसीसचंदणेण गाताई अनुलिपेत्ता' सरसगोशीपचन्दनेन स्वशरीरमनुलिप्य, 'तओ अंतरे च णं' तत्पश्चात् खल, , 'नासाणीसासवायवझं नासिकानिसश्वासवातवाह्य-नासाश्वासं निरुध्य, 'चक्खु. हरे' मनोहारित्वात्-चक्षुर्हरति-आत्मवशं नयति रूपातिशयितत्वाच्च यत्तत्-चक्षुई. रम्, 'वण्णफरिसजुत्तं' वर्णातिशयेन स्पर्शातिशयेन च संयोज्याऽऽकलिकम्, 'दृय'लालापेलवातिरेग' हयलालापेलवातिरेकम्-हयस्याऽश्वस्य लालातोऽपि-अधिक पेलवं सुकुमारम-'धवलं' श्वेतम् 'कणगखइयंतकम्म' कनकखचितान्तकम-कन पनी होने के कारण विशेष सुगंधवाली ऐसी एक छोटी सी तोलिया से 'गायाई लूहति' अपने शरीर को पोछा 'गायाई लूहिता' शरीर को .पोंछकर 'सरसेण गोसीसचंदणेणं गायाइं अणुलिंपति' फिर उसने • अपने शरीर पर सरस गोशीप चन्दन का लेपन किया 'सरसेन गोसीस चंदणेण गायाई अणुलिपेत्ता' सरस गोशीर्ष चन्दन से शरीर पर लेप करके 'तओ अंतरे च णं' फिर बाद में उसने 'णासाणीसास'वायवज्झे नाक की निभ्वास के वायु से-उडजाय ऐसे 'चक्खुहरम्' • तथा चक्षु को हरण करने वाले जबर्दस्ती आखों को भी अतिशय सुन्दरता के कारण अपनी ओर खींच लेने वाले ऐसे 'वग्गफ़रिस लुतं' 'तथा सुन्दर वर्ण और सुन्दर स्पर्श इन दोनों से युक्त ऐसे 'हयलाला 'पेलवातिरेगं' तथा घोडे की लार से भी अधिक सुकुमार 'धवल ४ाना सुगवाणा मेवा मे नाना सवा ३माथी 'गायाई लुहेति' पाताना .शरीरने सूझ्यु 'गायाई लुहित्ता' शरीर सूछीन 'सरसेण गोसासचंदणेण गायाई अणुलिंपेत्ता' ते पछी माशीष यहनना पोताना शरी२ ५२ ५ ध्ये. 'सरसेण .गोसीसचंदणेण गायाइं अणुलिंपेत्ता' सरस आशीष यनथी शरी२ ५२ ३५ ४शन 'तओ अंतरे च णं' ते पछी ते 'णासाणीसायवायवझे नाना निवासना पवनथी l तय सेवा 'चक्खुहरम्' मांगाने ७२२१ ४२वापामा अर्थात् मति. શય સુંદરતાના કારણે આંખેને પિતાની તરફ આકર્ષિત કરવાવાળા એવા 'वण्ण फारिसत्तं' सु४२ वर्ष मने सु१२ २५श मे मन्नथी युटत 'हयलाला पेलवातिरेग' sitी थी पY पधारे सु४२ 'धवलं तथा सहैत 'कणगखइयं तकम्म' तथा रेना मन्ने छ। सोनाना नाथी सारेसा मे - 'आकास
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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