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________________ ३१८ जीवाभिगमसन ककाः केचन देवाः भसोलनामकं नाटयविधिन्दर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा'-अपि एके देवाः-'अरमड मसोल नामदिवं नट्टविहिं उवदंसेंति'-आरभट भसोलनाम दिव्यं नाटयविधि मुपदर्शयन्ति, 'अप्पेगल्या देवा'-अप्येकका देवा:-उप्पायनिवाय पवुत्त'-उत्पातः उत्पतनं, निपातोऽयः पतनं तत्प्रयुक्तम्, 'संकुचियपसारिय'-संकुचितप्रसारितम्, 'रियारियं'- गमनागमम् 'भंत-संमंत-भ्रान्त सम्भ्रान्तम् एतनामकम्, 'दिव्वं णट्टविहिं उबदसें ति'-दिव्यं-सुरलोकोचितं नाट्यविधिगुपदर्शयन्ति । 'अप्पेगइया देवा चउन्विहं वातियं वादेंति'-अप्येकका देवा:-चतुष्प्रकारक वाघमातोद्यादिकं वादयन्ति-बायभेदान् दर्शयति-'त जहा' इत्यादि-तद्यथा-'ततंविततं-घणं-झुसि तत विततधन शुपिरम्, तत्र-तत-मृदङ्ग पटहादिः, विततं अंचितरिभित नाट्यविधिका प्रदर्शन किया 'अप्पेगझ्या देवा आरभडंनदृविहिं उवाईसे ति' कितनेक देवों ने उस समय आरभट नामकी नाटयविधिका प्रदर्शन किया 'अप्पेगड्या देवा भसोलं नट्टविहिं उचईसें ति' कितनेक देवोंने उस समय भसोल नामकी नाट्यविधिका उपदर्शन किया 'अप्पेगईया देवा आरभडभसोलनामदिव्वं-नविहिं उवदंसें ति' किननेक देवोंने उस समय आरभट भसोल नामकी दिव्य नाट्यविधिका प्रदर्शन किया 'अप्पेगइया देवा उपाय निवाय पवुत्तं' कितनेक देवोंने उस समय उत्पात-उपर उछलने रूप और निपात अधः पतन होने रूप, संकुचित प्रसारित करने रूप, गमन आगमनरूप और भ्रान्तरूप सभ्रान्तरूप दिव्य नाट्यविधिको उपदर्शित किया 'अप्पेगइया देवा चउविहं वादियं वादेति' कितनेक देवोंने उस समय चार प्रकार के वाजों को बजायावे चार प्रकार के बाजे इस प्रकार से हैं 'ततं वितनं घणं झुसिर' तत वितत घन और झुसिर इनमें मृदङ्ग और पटह आदि विलित से नामनी नाटयविधि मतावी. 'अप्पेगइया देवा आरभडं नट्टविरहिं उपदंसेति' ८८४ वामे ते १मते मारलट नामनी नाटयविधि मतावी 'अप्पेगइया देवा भसोलं नट्टविहिं उबईसेंति' मा वामे ये समये मसाल नामनी नाटयविधि मतावी. 'अपेगइया देवा आरभडभसोल नाम दिव्वं नट्टवीहिं उबदंसें ति' ४४ हेवाय ते १मते मारसट ससस नामनी नाटयविधि मतापी. 'अप्पेगइया देवा उपायनिवापयवुत्तं' ८४ हेवासे ते मते त्यात ઉપરઉછળવારૂપ અને નિપાત–નીચે પડથારૂપ, સંકુચિત પ્રસારિત કરવારૂપ ગમન गाशभन३५ तथा प्रान्त सम्मान्त३५ हिव्य नाटयविधि मतावी. 'अप्पेगइया देवा चउन्विहं वादियं वाति' 21 हेवामे थे पमते यार ४१२ पातमा या. ते न्यार प्रा२न पायो मा प्रभारी छ. 'ततं विततं घणंझुसिरं' तत
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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