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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ ३.३ सू.६६ विजयदेवाभिषेकवर्णनम् ३०३ 'सव्वारोहेणं' सर्वारोहेण सर्वाभिः सामग्रीभिः, 'सव्वनाडएहिं'-सर्वनाटकै, अनेकप्रकारकै नाटकैरित्यर्थः, 'सव्वपुप्फ गंधमल्लालंकारविभूसाए'-सर्वपुष्पगन्धमाल्यालङ्कारविभूपया, तत्र-पुष्पाणि, चम्पकादीनि, गन्धा-वासाः, माल्यानि पुष्पग्रथित दामानि, अलङ्कारा आभरणजातानि कटककेयूरादीनि एतेषां विभूषयां शोभया 'सव्वदिव्य तुडियणिणाएणं' सर्वदिव्य त्रुटितनिनादेन सर्वेषां दिव्यानों विलक्षणानाम्, दिविभवानां वा त्रुटितानां वाद्यानाम्-आतोद्यादीनां निनादेनविलक्षणकर्णमनोनिवृतिकरेण शब्देन, 'महया इडीए'-महत्या ऋद्धया, महत्यायावत्-शक्ति तुलितया, ऋया-परिवारादिकया, 'महया जुईए'-महत्या युत्या विस्फारितविकाशिततेजसा, 'महया वलेन' महता बलेन-स्वहस्त्यश्वरथपदाति सवपुप्फगंधमल्लालंकारविभूसाए' उन्होंने परिवार सहित आदिरूप ऋद्धि के अनुसार, शक्ति के अनुसार विस्फारित शारीरिक तेज के अनुसार, अपनी२ हस्त्यादिरूप सैन्य के अनुसार तथा अपने अपने अभियोग्य आदि समस्त परिवार के अनुसार एवं बहुत ही अधिक आदर के साथ साथ अपनी अपनी आभ्यन्तरिक वैक्रिय करणादिरूप एवं विभूति के साथ साथ एवं वाह्य में रत्नादि सम्पत्ति के साथ साथ सर्वरूप से अपनी शक्ति के अनुरूप शृङ्गार आदिक कर सब प्रकार के आदर भाव के साथ समस्त प्रकार की सामग्री के साथ२ अनेक प्रकार के नाटकों के करनेरूप महान् उत्सवों के साथ साथ समस्त पुष्प, गंधमालाएं और अलंकार रूप विभूषाओं के साथ साथ 'सत्य दिव्य तुडियणिणाएणं' समस्त दिव्य वाजों की ध्वनी के साथ२ 'महया इडीए' बडी भारी अपनी परिवार आदि रूप ऋद्धि के साथ साथ 'महया जुत्तीए' बडे भारी तेज के साथ२ 'महया बलेन' પરિવાર યુક્ત વિગેરે પ્રકારની કૃદ્ધિ અનુસાર, શક્તિ અનુસાર, વિસ્ફીરિત શારીરિક તેજ પ્રમાણે પિત પિતાના હાથી વિગેરે પ્રકારના સિન્ય પ્રમાણે તથા પિત પિતાના આભિયોગ્ય વિગેરે સઘળા પરિવાર પ્રમાણે તેમજ ઘણાજ વધારે આદર પૂર્વક પિત પિતાની આભ્યન્તરિક વૈક્રિયકરણદિ રૂપ શક્તિથી અને પિત પિતાની વિભૂતિ સાથે તથા બાહામાં રત્નાદિ સંપત્તિથી સર્વ પ્રકારથી પિત પિતાની શક્તિ પ્રમાણે શૃંગાર વિગેરે કરીને તમામ પ્રકારના આદર ભાવ સાથે સઘળી પ્રકારની સામગ્રી સાથે તેમજ અનેક પ્રકારના નાટકે કરવારૂપ મહાન ઉત્સવે પૂર્વક સઘળા પુષ્પ ગંધ, માળાઓ, અને અલંકાર ३५ विभूषामानी साथे साथे 'सव्व दिव्य तुडियणिणाएणं' सघा हिव्य पातमी नी पनीन-Aqा पूर्व 'मया इड्ढीए' घणी भाटी मेवी पोत पोतनी :
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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