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________________ जीवाभिगमन २५४ . यच्चेत्थं सुसज्जितम्, 'सीहासण वण्णो अपरिवारो' अत्र सिंहासन वर्णन • कर्तव्यम् भद्रासनात्मकपरिवारवर्णनरहितमिति । 'तत्य णं' तत्र खलु सिंहासने 'विजयस्स देवस्स सुबह अभिसेक्के भंडे सण्णिविवत्त चिटई' विजयस्य देवस्य सुबहु अभिषेकमाण्डमेकं सन्निक्षिप्तं तिष्ठति । 'अभिसेयसभाए उप्पि अद्धमंगलए जाव उत्तिमागारा सोलसविहे हिं रयणेहिं' अभिपेकसभाया उपरि अष्टावष्टौ मङ्गलकानि यावद् उत्तमाकाराणि पोडशविध रत्नैः 'तीसे णं अभिसेयसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं तस्याः खलु अभिषेकसभायाः उत्तरपूर्वस्याम्-ईशानकोणे 'एत्थ णं एगा मह अलंकारियसहा वत्तव्यया भाणियचा जाव गोमाणसीओ . मणिपेढियाओ' अत्र खलु एका महती-वृहत्तरा अलङ्कारसभावक्तव्यता भणितव्या विशाल सिंहासन है 'सीहासणवण्णओ' इस सिंहासन का वर्णन यहां उसके भद्रासन आदिरूप परिवार सिंहासनों को छोड़कर करना चाहिये यही बात 'अपरिवारो पद डाग यहां प्रकट की गई है. 'तत्य णं 'विजयस्स देवस्स' उस सिंहासन पर विजय देव का 'मुबहु अभिसेके भंडे संनिविखत्ते चिट्ठह' एक बहुत सुन्दर अभिषेकपात्र रखा हुआ है 'अभिसेय सभाए उप्पि अमंगलए जाय उत्तिमोगारा सोलसविहे हिं रयणेहिं' अभिषेक सभा के उपर आठ आठ स्वस्तिक आदि मंगल द्रव्य है यावत् यहां कृष्ण नील आदि वर्गों की ध्वजाएं हैं और छत्राति छन्त्र हैं इनके आकार सोलह प्रकारों के रत्नों से युक्त होने के कारण घडे उत्तम हैं । 'तीसेणं अभिसेयसभाए उत्तरपुरस्थिमे णं एत्य णं एगा महं अलंकारियसभावत्तव्वया भाणियचा' इस अभिषेक सभा की ईशान दिशा में एक विशाल अलंकारिक सभा है इसके प्रमाण का सीहासणे पण्णत्ते' ४ विशm AIसन छे. 'सीहासणवण्णओ' 20 Astસનનું વર્ણન અહીંયા તેનાં ભદ્રાસન વિગેરે પ્રકારથી પરિવાર અને સિંહसमान छोडी ४ सयर पात 'अपरिवारों से पहथी मही प्रगट ४२८ छे. 'तत्थ णं विजयस देवस्स' सिडासननी 6५२ विनय हेर्नु 'सुबहु अभिसेक. भंडे संनिक्खित्ते चिट्टई' मे घी मुं२ मलि पात्र रामेल छे. 'अभिसेयसभाए उप्पिं अमंगलए जाव उत्तमागारा सोलसविहे हिं रयणेहिं मलि४ समानी ઉપર આઠ આઠ સ્વસ્તિક વિગેરે મંગલ દ્રવ્ય છે. યાવત, કૃષ્ણ, નીલ, વિગેરે રંગની ધજાઓ છે અને છત્રાતિછત્ર છે. તેને આકાર સળ પ્રકારના રત્નથી યુક્ત पाथी ते घgle तम य छ 'तीसेणं अभिसेयसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं एत्य णं एगा महं अलंकारियसभा वत्तव्यया भाणियव्वा' मे मलिषे४ समानी ઈશાન દિશામાં એક વિશાળ અલંકારિક સભા છે. તેના પ્રમાણુનું વર્ણન પરિવાર
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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