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________________ २३० जीवामिगमसूत्र रत्नानि श्रेष्ठशस्त्राणि संनिक्षिप्तानि तिष्ठन्ति । कथंभूतानि रत्नप्रहरणानि-तत्राह 'उज्जल'-इत्यादि 'उज्जलसुणिसियसुतिक्वधारा'-उज्ज्वल मुनिशितसुतीक्ष्णधाराणि-तत्रोज्ज्वलानि चाकचिक्याऽतिशयेन निर्मलानि मुनिशितानि-अतिशयेन तेजितानि, एतएव सुतीक्ष्णधाराणि, 'पासाइया'-प्रासादिकानि दर्शनीयानि अभिरूपाणि प्रतिरूपाणि 'तीसेणं समाए मुहम्माए'-उप्पि-तस्याः सुधर्मायाः खलूपरिसमायाः वहवे अट्ठमंगलगा.'-वहन्यष्टौ अष्टौ मङ्गलकानि स्वस्तिक-श्रीवत्स प्रभृतीनि, 'झया'-कृष्णनीलादि चामरध्वजाः 'छत्ताइछत्ताणि'-छत्रातिछत्राणि ॥सू ० ६२॥ मूलम्-सभाएणं सुहम्माए उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं एगे महं सिद्धायतणे पण्णत्ते अद्धतेरस जोयणाई आयामेणं छ जोयणाई सकोसाइं विक्खंभेणं नवजोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं जाव गोमाणसिया वत्तव्वया जाचेव सहाए सुहम्माए वत्तव्वया सा चेव निरवसेसा भाणियव्वा तहेव-दारामुहमंडवा पेच्छाघरमंडवा झया थूमा चेइयरुक्खा महिंदज्झया गंदाओ पुक्खरिणीओ, तओ य सुहम्माए जहा पमाणं मणगुलियाणं गोमाणसीया धूवयघडिओ तहेव भूमिभागे उल्लोए य जाव मणियहां विजयदेवके स्कटिक आदि अनेक शस्त्ररत्न रखे हुए है । 'उज्वल सुणीसिय सुतिक्खधारा पासादीया' ये शस्त्र बहुत ही चमकीले हैं। तेज हैं और तीक्ष्णधार वाले है । तथा 'पासाईया' प्रासादीय है। यहां 'दर्शनीयानि अभिरूपाणि, प्रतिरूपाणि' इन पादों का भी कथन कर लेना चाहिये 'तीसेणं सभाए सुहम्माए उप्पि' इस सुधर्मासभा के ऊपर 'वहवे अट्ठमंगलगा' अनेक स्वस्तिक आदि ८-८ मंगलद्रव्य हैं। 'झया' कृष्ण नील आदि रंग की अनेक चामरध्वजाएं हैं और छत्रातिछत्र हैं ॥१०६२॥ 'उज्जलसुणीसियसुतिक्खवारा पासादीया) मे शस्त्रो घाट यमा छे. तेहार छे. भने तley धारा छ. तथा 'पासाईया' प्रासादीय छे. महीया 'दर्शनीयानि अभिरूपाणि प्रतिरूपाणि' मा पहोर्नु ५४ ४थन ४ . 'तीसेणं सभाए सुहम्माए उप्पिं' मा सुधर्मा समानी ५२ 'वहवे अदृट्ठ मंगलगा' मने स्वस्ति। विगेरे मा २मा मनसा द्रव्यो छ. 'झया' , नीट, विगेरेगनी मने याभ२ - या छ. मन यातिछत्री छ. ॥ सू..६२ ॥
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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