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________________ प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू ६१ सुधर्मासभायाः वर्णनम् १८७. वृषभतुरगनरमकरविहगव्याल किन्नररुरुसरभचमरकुञ्जरवनलतापद्मलताभक्तिचित्रा, पुनश्चभि चित्रस्थैश्चमत्कृता सुधर्माऽऽस्ते, तथा-'थंझुग्गय वइरवेइया परिगयाभिरामा' स्तम्भोगतवज्रवेदिका परिगताभिरामा, तत्र स्तम्भोगतया-स्तम्भोपरिवर्तिन्या वज्रवेदिकया-वजरत्नमय्या वेदिकया परिगता सती याऽभिरामा मनस आहादिका सा स्तम्भोगत वनवेदिकाभिरामा 'विज्जाहर जमलजुगलजंतजुत्ता विव अच्चिसहस्स मालणीया' विद्याधरयमल युगलयन्त्रयुक्तानीवाऽचिःसहस्रमालनीया, 'विद्याधरयोर्यद् यमलं समश्रेणीकं युगलं-द्वन्द्वम् इति विद्याधरयमलयुगलं तस्य यंत्राणि प्रपंचास्तैर्युक्ताइवा-ऽचिंपां सहस्रैर्मालनीया शोभनीया. इत्यचिःसहस्रमालनीया । 'अयम्भावः' एवं नाम प्रभासमुदायोपेता सभा येनैवं सम्भावना जायते यथा नूनमेतानि नास्वभाविकप्रभासमुदायानि किन्तुविशिष्ट विद्याधरशक्तिमत्पुरुपविशेषप्रपञ्चयुक्तानीति । 'रूवगसहस्स कलिया' रूपक सहस्रकलिताः रूपकाणां सहस्राणि रूपकसहस्राणि तैः कलितेति रूपकसरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्ता' उस सभामें ईहामृग वृषभ-बेल तुरग-घोडा-नर-मनुष्य, मकर-मगर-विहग-पक्षीव्याल-सर्प-किन्नर-देवजाति विशेष, रुरु-भृगविशेष,-सरभ-अष्टापद, चमर-चमरीगाय, कुंजर--हाथी, वनलता-पद्मलता, इन सबके चित्र बने हुए है अतः इनसे वह सभाबडी सुहा वनी हो रही है, 'थंभुग्गयवइरवेझ्या परिग्गयाभिरामा' इस में थंभो के ऊपर वज्र की वेदिकाएं वनी हुई है। अतः उनसे युक्त हुई यह सभा वडी ही चित्ताकर्षक हो रही है "विजाहरजमलजुगलजंतजुत्ताविव अच्चिसहस्स मालणीया' विद्याधरों की जोडी की जैसो हजारों की मालाओं से यह चारों ओर से परिवृत्त बनी हुई है 'रुवगसहस्सकलिया हजारों रूपों से यह युक्त है, 'मिसमाणी भिन्भिसमाणी' तेज से सहित है और विशेष रूप से पउमलयभत्तिचित्ता' ये सलामा हामृ वृषस-पण तुर-धाडाना-मनुष्य भ४२મધર વિહગ-પક્ષિ ચાલ–સ કિન્નર-દેવ વિશેષ રૂરૂ-મૃગવિશેષ–સરભ અષ્ટાપદ ચમાર ચમરી ગાય કુંજર-હાથી વનલતા, પલતા આ બધા પ્રકારના ચિત્રો मनापामा मावेश छ. तेथी मे समा घणी सोडणी मागे छ. 'थभुग्गय वइरवेइया परिग्गयाभिरामा' तभी स्तमानी ५२ १०मनी वािमा मनावेस छे. तथी २ समा ult यित्त४४ राय छे. 'विज्जाहरजमलजुगलजंतजुत्ताविव अच्चिसहस्समालणीया विद्याधन मामानी रेभ । भाणामाथी से यारे माथी वागायत छ. 'रूवगसहस्सकलिया' ते २॥ ३५थी युद्धत छ. 'मिसमाणी भिभिसमाणी' ते युद्धत छ. मिन विशेष प्रान तेना प्रमाथी
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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