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________________ प्रमैयद्योतिका टीका प्र.१० सू.१५५ जीवानां दशविधत्वनिरूपणम् १५५७ देवानां सिद्धानां च कतरेभ्यः कतरेऽल्पा वा० खलु भदन्त ! भगवानाह'गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयसिद्धा' गौतम ! सर्वस्तोकाः प्रथमसमयसिद्धाः अष्टोत्तरशतादूर्ध्वमभावात् । “पढमसमयमणूसा असंखेजगुणा' ततस्ततः प्रथमसमयवन्तो मनुष्य-नैरयिक-देव-तिर्यग्योनिकाः क्रमशोऽसंख्येयगुणाः इति । 'एएसि णं भंते ! अपढमसमयनेरइया णं जाव अपढमसमयसिद्धाण य कयरे के, प्रथम समयवर्ती तिर्यग्योनिकों के प्रथम समयवर्ती मनुष्यों के, प्रथम समयवर्ती सिद्धों के बीच में कौन जीव किन जीनों को अपेक्षा अल्प हैं । कौन किनकी अपेक्षा बहुत हैं ? कौन किनके बराबर हैं ? और कौन किनसे विशेषाधिक हैं ? इसके उत्तर में प्रयु कहते हैं'गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयसिद्धा' हे गौतम ! सब से कम प्रथम समयवर्ती सिद्ध जीव है क्योंकि एक समय में १०८ जीव सिद्ध होते हैं अधिक नहीं 'पढमसमय मणूसा असंखेनगुणा' इनकी अपेक्षा जो प्रथम समयवर्ती मनुष्य हैं वे असंख्यातगुणें अधिक हैं । 'पढम समय रइया असंखेज्जगुणा' पढमसमयदेवा असंखेजगुणा, पढम समयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा' इनकी अपेक्षा प्रथम समयवर्ती जो नैरयिक हैं वे असंख्यातगुणें अधिक हैं इनकी अपेक्षा प्रथम समयवर्ती जो देव हैं वे असंख्यातशुणे अधिक हैं इनकी अपेक्षा जो प्रथम समयवर्ती तिर्यग्योनिक जीव हैं वे असंख्यातगुणे अधिक हैं। 'एएसि णं भंते ! अपढम समयनेरइयाणं जाव अपढम समय सिद्धाण સયવતિ રિયિકે, પ્રથમ સમયવતિ તિર્યાનિકે, પ્રથમસમયનતિ મનુષ્ય, પ્રથમ સમયવતિ દે અને પ્રથમસમયવતિ સિદ્ધોમાં કયા જીવો ક્યા જીવોના કરતાં અ૫ છે? કેણુકેના કરતાં વધારે છે? કેણ કેની બરાબર છે? અને आप अनाथी विशेषाधि छ ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रसुश्री ४ छ । 'गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयसिद्धा' गौतम ! सौथी माछा प्रथम सभयती' સિદ્ધ છે. કેમકે એક સમયમાં ૧૦૮ એક સો આઠ જે સિદ્ધ બને છે. qधार नही 'पढमसमयमणूसा असंखेज्जगुणा' तेना ४२di प्रथम समयपतिः २ भनुप्य छ, तेरी मण्यात धारे छ. 'पढमसमय णेरइया असंखेज्ज गुणा पढमसमय तिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा तेना ४२i प्रवम समयपति જે રયિકે છે તેઓ અસંખ્યાતગણું વધારે છે. તેના કરતાં પ્રથમ સમયવતિ रतिययोनि ७५ छे. तेसो सभ्याता थारे छे. 'निशं भंते ! अपढमसगनेरइयाणं जाव अपढमसमयसिद्धाण य कचरे कवरेहिनो सपा या -
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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