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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ. ३ सू. ५९ विजया रा. स्थल विस्तारादिकं च १३९ नानामणिमय दामाऽलङ्कृतानि अन्तर्बहिश्च श्लक्ष्णानि तपनीय वालुका प्रस्तनि सुख पनि सश्रीकानि सुरूपाणि प्रासादीयानि दर्शनीयानि अभिरूपाणि प्रतिरूपाणीति । "तेसि णं दाराणं उभओ पासिं तेषां खलु द्वाराणांउभयोः पार्श्वयोः, 'दुहतो णिसी हियाए' द्विधातो द्विप्रकारायां नैषेधिक्याम् 'दो दो चंदण कलसपरिवाडीओ पन्नताओ द्वौ द्वौ चन्दनकलशौ परिपाटचौ प्रज्ञप्तौ ते चन्दनकलशाः वरकमलप्रतिष्ठानाः सर्वरत्नमयाः - अच्छा: श्लक्ष्णाः घृष्टाः वर्णन पद्मवर वेदिका जैसे ही समझलेना चाहिये । अंकरत्नों के और कनक - सोने के कूट - शिखर है तपनीय श्वेत सुवर्ण मयस्तूपिकाएं-छोटे शिखर हैं वह श्वेत किस प्रकार का है वह कहते हैं 'संखतल' इत्यादि, निर्मल मलरहित जैसा शंख के उपर का भाग होता है वैसा तथा गाढा जमा हुआ दही गाय दूध का फेन चांदी का पुंज इनके जैसा श्वेत है, रत्नों के तिलक और अर्द्ध चन्द्रों के चित्रों से चित्रित है वहां अनेक प्रकार की मणियों की मालाएं लगी हुई है अन्दर और बाहर से श्लक्ष्ण-चिकने हैं, तपनीय सुवर्णमयवालुकाविछी हुई हैं जिसका स्पर्शसुखद है सश्रीक आदि प्रतिरूप पर्यन्त के विशेषणों का अर्थ पहले कह चूके हैं । 'तेसिणं दाराणं उभओ पासिं' उन पूर्वोक्त विशेषणों वाले विजयद्वारों के दोनों पार्श्वो में दो दो प्रकार की नैषेधिकाओं पर 'दो दो चंदणकलसपरिवाडीओ पन्नत्ताओ' दो दो चंदनकलशों की श्रेणियां है वे चन्दन कलश सुन्दर कमलों के प्रतिष्ठान-आधार पर સમજી લેવું, તે શિખરા અંક રત્નાના તથા કનક કહેતાં સેાનાના અનેલ છે. અને તેની સ્તુવિકાઓ અર્થાત્ નાના નાના શિખરો તપનીય શ્વેતસુવણ ના બનેલ छे. ते देवा श्वेत छे ? मे भाटे टुडे छे - 'संखतल' इत्याहि शमनी उपरनो ભાગ જેવા નિલ મલવગરના હેાય છે. તેવા તથા ખૂબ જામી ગયેલ દહી, ગાયના દૂધના ફીણ ચાંદીના ઢગલા એ જેવા સફેદ હેાય છે, તેવા સંસ્કૃત એ હાય છે. એ શિખરા રત્નાના તિલક અને અર્ધચંદ્રના ચિત્રોથી ચિત્રિત છે. ત્યાં અનેક પ્રકારના મણિયાની માળાએ લગાડેલ છે. અંદર અને બહારથી શ્લણ ચીકણા છે. તપનીય સુવર્ધમય રત પાથરેલ છે. કે જેના સ્પર્શી ઘણાજ સુખદ હાય છે, એ સશ્રીકથી લઈને પ્રતિરૂપ સુધીના તમામ વિશેષણાવાળા છે. આ વિશેષણાના અ પહેલા કહેવામાં આવી ગયેલ છે, તે તે ત્યાંથી સમજી लेवे।. ‘तेसि णं दाराणं उभओ पासि' से पूर्वोस्त विशेषशेोवाणा विन्त्यद्वारोना मन्ने पडणायामां मम्मे अारनी नैषेधिमा भूटिया ५२ ' दो दो चंदणफलसपरिवाडीओ पन्नत्ताओ' मम्मे बहन उसशोनी पंक्तियो छे, मे यहन
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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