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________________ १४१८ जीवाभिगमसूत्र स्यान्तरम् । थावरस्स अंतरं दो सागरोवमसहस्साई साइरेगाई, णो तस 'थावरस्स पत्थि अंतरं' स्थावरस्यान्तरं द्वे सागरोपमससे सातिरेके, नो त्रस स्थावरस्यान्तरं नास्ति, 'अप्पा वहु०' अल्पवहुत्वम्-भदन्त ! साना-स्थावराणां-नो त्रसस्थावराणां च कतरे कतरेभ्योऽल्पा चा बहुका तुल्याविशेषाधिकावेति प्रश्ने भगवानाह-हे गौतम ! 'सव्वत्थोवा तसा' सर्वस्तोकास्त्रसाः शेषजीवाऽपेक्षया, 'नो तसा नो थावरा अनंतगुणा' नो असा नो स्थावराश्चाऽनन्तगुणाः 'स्थावरा अणंतगुणा' एभ्यः स्थावराः अनन्तगुणाः सिद्धेभ्योऽपि स्थावरा अनन्तगुणाः । 'सेत्ततिविहा सव्वजीवा पन्नत्ता' स एते त्रिविधाः सर्वजीवाः, इति ॥सू० १४५|| सम्प्रति चतुर्विधजीवप्रतिपत्तिमाह मूलम् तत्थ जे ते एवमासु चउबिहा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु-तं जहा मणजोगी वइजोगो कायजोगी अजोगी। मणजोगीण भंते ! जहन्नेणं एक्कं समय उकोअन्तर वनस्पतिकाल प्रमाण हैं 'थावरस्त अंतरं दो सागरोवमसह स्साइं साइरेगाई' स्थावर जीव का अन्तर कुछ अधिक दो हजार साग रोपम का है। 'णो तस थावरस्स णथि अंतरं' जो जीव नो बस नो स्थावर हैं-सिद्ध हैं-उनका अन्तर नही होता है। इनके अल्पबहुत्व का विचार-सव्वत्थोवा तसा, नो तसा नो थावरा अर्णतगुणा, थावरा अणंतगुणा' सब से कम स जीव है इनकी अपेक्षा नोत्रस नो स्थावर जीव अनन्तगुणे अधिक हैं। इनकी भी अपेक्षा स्थावर अनन्तगुणें अधिक हैं। 'सेत्तं तिविहा सव्व जीवा पन्नत्ता' इस प्रकार से समस्त जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं ॥१४५॥ - એમના અંતર દ્વારનું કથન 'तसस्स अंतरं वणस्सइकालो' सय वानुमत२ वनस्पति ४ अभानु छे. 'थावरस्स अंतरं दो सागरोबमसहस्साई -साइरेगाई' स्था१२ वर्नु मात२ ४४ वधारे में उन२ सागरोपभनु छ. 'णो तसथावररस णस्थि અંતર જે જીવ ને ત્રસ અને ને સ્થાવર-સિદ્ધ છે તેઓનું અંતર હતું नथी. तभना म८५ मधुपयानु ४थन-'सव्वत्थोवा तसा, नो तसा नो थावरा સાંત કુળ સૌથી ઓછા ત્રસ જીવે છે. તેના કરતાં ને ત્રસ ને સ્થાવર मानता धारे छ. 'सेत्तं तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता' मा शत सघा જી ત્રણ પ્રકારના કહેવામાં આવેલા છે. સૂ. ૧૪૫ છે.
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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