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________________ ૨૨૨૮ जीवाभिगमसूत्र ख्यायन्ते 'एगे एवमासु' केचन-क्यच के एवं-यथाभिधास्ये-उक्तवन्तः । किन्तत्राह 'दुविहा सव्व जीवा पन्नत्ता' सर्वे जीवा द्वैधा भेदमापन्नाः अपेक्षया राशिद्वयमध्ये एव सर्व जीवानामन्तर्भावात् । 'जाव दसविहा सध्य जीवापन्नत्ता' त्रि प्रकारकाः सर्वजीयाः प्रज्ञप्ताः चतुप्पश्चादि दशान्त प्रकारका यावत् । 'तत्य णं जे ते एवमासु दुविहा सव्य जीवा पन्नत्ता ते एवामाइंसु' तत्र खल जीवभेदप्रकारे ये ते एवमुक्तवन्तो द्विविधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्तास्त एवं वक्ष्यमाणप्रकारेणोक्तयन्तः 'तं जहा तद्यथा 'सिद्धा य असिद्धा य सिद्धाश्चाऽसिद्धाश्चपण्णत्ता' समस्त जीव इस प्रकार दो प्रकार के कहे गये हैं अर्थात् जितने भी जीव हैं उन सब का अन्तर्भाव इन दो भेदों में ही हो जाता है'जाव दसविहा सव्व जीवा पण्णत्ता' किसी अपेक्षा ऐसे कहते हैंसमस्त जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं किसी अपेक्षा ऐसा कहते हैं समस्त जीव चार प्रकार के कहे गये हैं किसी अपेक्षा ऐसा कहते हैं-समस्त जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं कोई २ ऐसा कहते हैंसमस्त जीव ६ प्रकार के कहे गये हैं किसी अपेक्षा ऐसा कहते हैसमस्त जीव-सात प्रकार के कहे गये है किसी अपेक्षा ऐसा कोई ऐसा कहते हैं-समस्त जीव ८ प्रकारके कहे गये हैं किसी अपेक्षा ऐसा कहते हैं-समस्त जीव १० प्रकार के कहे गये हैं। इनमें 'जे एवमाहंसुदुविहा सव्व जीवा पन्नत्ता' जिन्होंने ऐसा कहा है कि समस्त जीव दो प्रकार के हैं-'ते एवमासु' उन्होंने इस सम्बन्ध में ऐसा विवेचन किया हैप्रतिपत्तियो मा प्रभारी अवाम मावेस छे. तभा 'एगे एव माइंसु माया मा प्रभारी ४ छ. 'दुविहा सव्व जीवा पण्णत्ता' सघा वो मे પ્રકારના કહેવામાં આવેલ છે. અર્થાત્ જેટલા જીવે છે એ બધાને અંતર્ભાવ मामे होम १ 25 Mय छ, 'जाव दसविहा सव्व जीवा पण्णत्तो' । અપેક્ષાથી એવું કહે છે કે–સઘળા જીવે ત્રણ પ્રકારના કહેવામાં આવેલ છે કેઈ અપેક્ષાથી એવું કહે છે કે સઘળા જી ચાર પ્રકારના કહેલા છે. કોઈ અપેક્ષાથી એવું કહે છે કે સમસ્ત છે પાંચ પ્રકારના કહેવામાં આવેલ છે. કઈ કઈ એવું કહે છે કે–સઘળા જીવો છ પ્રકારના કહેવામાં આવેલા છે. ‘કેઈ અપેક્ષાથી એવું કહે છે કે–સઘળા છ સાત પ્રકારના કહેવામાં આવેલા છે. કેઈ અપેક્ષાથી એવું કહે છે કે–સઘળા જીવે આઠ પ્રકારના કહેવામાં આવેલા છે. કેઈ અપેક્ષાથી એવું કહે છે કે સઘળા જી નવ પ્રકારના કહેવામાં આવેલ છે. કેઈ અપેક્ષાથી એવું કહે છે કે સઘળા જી ૧૦ દસ प्रारना ४ामा मावेश छ. तेभ 'जे एवमाहसु दुविहा सब जीवा पण्णत्ता' हेमामे मे उस छ है साल में प्रारना डेरा छे. 'ते एवमाइंसु
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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